लघुकथा

लघुकथा – हे आत्मा तू संतुष्ट हो जा

दहाड़ की आवाज सुनकर वे बाहर आ गईं। वे यानि कि बड़ी बहू मतलब श्याम देवी, गृह स्वामिनी रमादेवी के ज्येष्ठ पुत्र किशोर की पत्नी।
बाहर खड़ी मिसेस हजेला बुक्का फाड़कर चिल्ला रहीं थीं। मिसेस हजेला श्याम देवी की परम प्रिय पड़ोसन है। अगल बगल में मकान, एक की दीवार से दूसरे का फासला बामुश्किल पांच फ़ीट।
“यह क्या तमाशा है, मेरे घर की दीवार पर किसने पान थूका है ? गर्जन का स्वर ऊँचा हो रहा था। बड़ी बहू ने देखा कि मिसेस हजेला की दीवार पर तीन जगह पान थूकने के निशान हैं। उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि उनके घर के नए कमरे के निर्माण के समय किसी मजदूर ने पान चबाकर थूका है जो कि मिसेस हजेला के घर की दीवार पर तीन बड़े धब्बों की शक्ल में रूपांतरित हो गया है। ।
“सॉरी आंटी एक्सटेंशन वर्क के समय किसी मजदूर ने यह काम किया होगा। हमारे यहाँ तो कोई पान खाता ही नहीं है। मैं आपकी दीवार पेंट करा दूँगी। “बड़ी बहू ने कहा।
“क्या कहा, तुम पेंट कराओगी ! इससे क्या होगा ? क्या इससे मुझे शांति मिल जायेगी ? तुम्हारा अपने मजदूरों पर कोई कंट्रोल नहीं है। कैसे हिम्मत हुई उस मजदूर के बच्चे की क़ि मेरी दीवार पर थूके “। मिसेस हजेला का क्रोध थर्मामीटर के पारे के समान क्वथनांक पर पहुँच गया था।
“आंटी मैं बढ़िया पेंट करा दूंगी “बड़ी बहू विनम्र होकर बोली।
“नहीं तुम कोई पेंटिग वेंटिंग नहीं करवाऊँगी। तुम लोगों ने मेरी दीवार पर तीन जगह थूका है, मैं चार जगह थूकूँगी तभी मुझे आत्म संतोष होगा, सुख मिलेगा और सुकून मिलेगा।” इतना कहकर और हजेला उबलती हुईं वहां से चली गईं।
शाम को उन्होंने सरे आम दो पान चबाये, अपने घर क़ि छत पर चढ़ीं और बड़ी बहू के घर की दीवार पर चार जगह थूक दिया, सुन्दर नक्काशी, मुग़ल काल के ईरानी पैटर्न क़ी डिज़ाइन बना दी। मकबूल फ़िदा हुसेन भी ऐसी चित्रकारी नहीं कर सकता। वे बड़बड़ाईं “बदला पूरा हुआ, अब मुझे आत्म संतोष मिलेगा। ”
मिसेस हजेला प्रसन्न हैं, उनकी आत्मा को शांति मिली, सुकून मिला। इधर बड़ी बहू भी खुश है कि हजेला क़ी दीवार पेंट नहीं कराना पड़ी। उनकी आत्मा को भी संतोष है। इसी तरह सबकी आत्माओं को संतोष हो रहा है।

प्रभुदयाल श्रीवास्तव

 

*प्रभुदयाल श्रीवास्तव

प्रभुदयाल श्रीवास्तव वरिष्ठ साहित्यकार् 12 शिवम् सुंदरम नगर छिंदवाड़ा म प्र 480001