धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

चरित्र निर्माण हो शिक्षा का उद्देश्य

उग्रोऽर्चिता दिवमारोह सूर्य  (अथर्व 19.65.1) अर्थात् हे सूर्य समान तेजस्वी मनुष्य तू अपने तेज के साथ उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर चढ़ जा। मनुष्य उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर मात्र शिक्षा के द्वारा ही पहुँच सकता है। जब से मानव सभ्यता का सूर्य उदय हुआ हैं तभी से भारत अपनी शिक्षा तथा दर्शन के लिए प्रसिद्ध रहा है। यह सब भारतीय शिक्षा के उद्देश्यों का ही चमत्कार है कि भारतीय संस्कृति ने संसार का सदैव पथ-प्रदर्शन किया और आज भी जीवित है। वर्तमान युग में भी महान दार्शनिक एवं शिक्षा शास्त्री इसी बात का प्रयास कर रहे है। कहा भी है कि जीवन एक पाठशाला है जिसमें अनुभवों के आधार पर हम शिक्षा पाते है। शिक्षा का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा हमारी समृद्धि में आभूषण, विपत्ति में शरण स्थान और समस्त कालों में आनंद स्थान होती है। जीवन लक्ष्य की पूर्ति के लिए शिक्षा आवश्यक है।

महान दार्शनिक एवं शिक्षाविद डा0 राधाकृष्णन् भी मनुष्य को सही अर्थो में मनुष्य बनाने के लिए शिक्षा को सर्वाधिक आवश्यक मानते हैं। उनके अनुसार ‘‘शिक्षा वह है जो मनुष्य को ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ उसके हृदय एवं आत्मा का विकास करती है।’’ शिक्षा व्यक्ति को स्वयं के विकास के साथ-साथ समाज और राष्ट्र के विकास के लिए भी प्रेरित करती है। शिक्षा के महत्व को परिलक्षित करते हुए स्वामी विवेकानन्द जी कहते हैं कि ‘‘जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सकें, मनुष्य बन सकें, चरित्रगठन कर सके और विचारों का सामंजस्य कर सके यथार्थ में वही वास्तविक शिक्षा होगी’’ स्वामी जी भारत में ऐसी शिक्षा चाहते थे जिसमें उसके अपने आदर्शवाद के साथ पाश्चात्य कुशलता का सामंजस्य हो उनका कहना था कि लोगों को आत्मनिर्भर बनाना अति आवश्यक है वरना सारे संसार की दौलत से भी भारत के एक गांव की सहायता नहीं की जा सकती। अतः नैतिक तथा बौद्धिक दोनो ही प्रकार की शिक्षा प्रदान करना देश व समाज का पहला कार्य होना चाहिए। भर्तृहरि ने अपने नीति शतक में लिखा है कि
‘विद्या गुरुणा गुरु’’ अर्थात् विद्या गुरूओं की भी गुरू है विद्या से ही मानव का जीवन स्वर्णिम बन सकता है। बिना विद्या के नर पशु के समान है यथा ‘‘विद्याविहीन पशु’’ मानवता को सही प्रकार से परिभाषित करने के लिए शिक्षा अति आवश्यक है।

यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि, आज जिस तरह का वातावरण चारों तरफ फैलता जा रहा है, वह बच्चों की शिक्षा के साथ समाज के लिए भी घातक है। हमें ऐसी शिक्षा प्रदान करनी चाहिए जिससे बच्चों का चरित्र निर्माण हो सके, उनकी मानसिक शक्ति बढ़े,. बुद्धि विकसित हो और देश के युवक अपने पैरों पर खड़ा होना सीखें। भौतिकवादी स्वार्थपरक सोच के फैलते प्रभाव को कम करने के लिये आवश्यक है कि स्कूली शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा, शांति शिक्षा की भी नींव मजबूत की जाए। लेकिन देश की शिक्षा के वर्तमान परिदृश्य के बारे में एक कवि ने अपनी चार पंक्तियों में वर्णन किया है।
‘‘चलो जलाए दीप वहां, जहां अभी भी अंधेरा है।
शिक्षा पाकर भिक्षा मांगे, युवजन खाए ठोकर आज
आजादी का स्वप्न दिखाकर, पाखंडी करते है राज।।
भ्रष्ट व्यवस्था ने भी डाला, अब यहां डेरा है।
चलो जलाएं दीप वहां जहां अभी भी अंधेरा है।।

हमें शिक्षा के वास्तविक लक्ष्य व शिक्षा की भूमिका पर ध्यान देने की आवश्यकता है शिक्षा ही मानव को महामानव बनाती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शिक्षा में शांति शिक्षा की महत्वपाूर्ण आवश्यकता है। वर्तमान के भयावह दौर में जब मानव गलाकाट स्पर्धा का अभिन्न अंग है वह स्वयं के सिवा किसी का ध्यान नहीं रखता किसी दूसरो की भावनाओं का सम्मान करना, उसकी मान्यताओं का आदर कर मात्र मृगतृष्णा है। शिक्षा के अभाव के ही कारण आज पूरे विश्व में आतंकवाद का दानव अपने विकराल रूप को धारण किये हुए है उन्हें शिक्षा तो दी जा रही है परन्तु शांति का नहीं अपितु अशांति की इसीलिए आज के दौर में शांति शिक्षा की आवश्यकता है। शिक्षा मानव को आपस में प्रेम, सौहार्द, समता की भावना को जागृत कर विश्व का एक जिम्मेदार नागरिक बनाती है। आज शिक्षा में ऐसे मूल्यों, आदर्शो को समाहित करने की आवश्यकता है। जिससे पूरा भूमण्डल ’’वसुधैव कुटुम्बकम्’’ की भावना से ओत प्रोत हो। प्रत्येक मानव अपने कर्तव्य के साथ शांति को अपनायें कविता की ये पंक्तियां हमारा मार्गदर्शन करती है।
कर्तव्य की तलवार से अधिकारों को वश में कर लो।
और शांति के श्रृंगार से मन में खुशिया भर लो।।
ये जिन्दगी मौत की अमानत है, ये हमेशा याद कर लो।।
कर्तव्य की ……………………………
आज अपना है कुछ अच्छा कर लो
कल किसी और की अमानत है, याद कर लो।।
कर्तव्य की तलवार से अधिकारों को वश में कर लो।
शान्ति के श्रृंगार से मन में खुशियाँ भर लो।।

शांति शिक्षा के ळब्च्म् स्कूलों में शांति शिक्षा को बढ़ावा देता है उनका उद्देश्य है।
1. शांति शिक्षा सभी पाठ्यक्रम में एकीकृत देखने के लिए समुदाय और दुनिया भर में परिवार शिक्षा जीवन का एक हिस्सा बनने के लिए।
2. शांति के लिए सिखाने के लिए सभी शिक्षकों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय योगदान।
शिक्षा से ही विश्व शांति संभव है। विश्व शांति सभी देशों और लोगों के बीच और उनके भीतर स्वतंत्रता शांति और खुशी का एक आदर्श है। विश्व शांति पूरी पृथ्वी में अहिंसा स्थापित करने का एक विचार है। जिसके तहत देश या तो स्वेच्छा से या शासन की एक प्रणाली के जरिये इच्छा से सहयोग करते है। ताकि कुछ को रोका जा सके हालांकि कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग विश्व शांति के लिए सभी व्यक्तियों के बीच सभी तरह की दुश्मनी के खात्मे के संदर्भ में किया जाता है।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शांति शिक्षा जीवनदायिनी के समान है आज पूरा विश्व जिन समस्याओं से जूझ रहा है उसका निराकरण मात्र शांति शिक्षा के द्वारा ही संभव है। वर्तमान में आज मानव आपसी बैर भावना, इष्र्या, कपट एवं संकीर्ण मानसिकता का गुलाम बन गया है। इसे केवल शिक्षा के द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है। चारो तरफ अशांत माहौल को शांति शिक्षा ही शांत कर सकती है। यदि शिक्षा के साथ भारतीय मूल्यों एवं आदर्शो को भी शिक्षा में समाहित करने की आवश्यकता है। भारतीय शिक्षा मानव शांति की नहीं अपितु पूरे ब्रह्मांण की शांति की बात करती है।
यथा धौ शान्ति अन्तरिक्षं शान्ति पृथ्वी शान्ति आपाः शान्ति औषधी शान्ति….. अर्थात् अन्तरिक्ष में शान्ति हो पृथ्वी में शान्ति हो जल में शान्ति हो औषधी में शान्ती हो। शान्ति शिक्षा ही मानव को चरमोत्कर्ष पर पहुंचा सकती है।

सोमेन्द्र सिंह

सोमेन्द्र सिंह " रिसर्च स्काॅलर " दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली शास्त्री सदन ग्राम नित्यानन्दपुर, पोस्ट शाहजहांपुर, जिला मेरठ (उ.प्र.) मो : 9410816724 ईमेल : somandrashree@gmail.com