धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

लेख– दिवस विशेष- देश के भीतर ही नहीं विदेशों में भी देवी सरस्वती के स्वरूप की महत्ता

हमारा देश संस्कृति औऱ सभ्यता प्रधान देश है। जिसमें अनेक त्यौहार ऐसे गूथे हुए हैं, जैसे कि किसी माला में मोतियां पिरोई गई हो। देश में अनेक त्यौहार मनाये जाते है और हर त्यौहार का अपना एक अलग महत्व औऱ प्रसंग से जुड़ा हुआ होता है। जो हमारी संस्कृति को अन्य देशों की संस्कृति औऱ सभ्यता से भिन्न बनाता है। त्यौहारों की माला में एक त्यौहार वसंतपंचमी के नाम से भी गुथा हुआ है। इस दिन हिंदू मान्यताओं के मुताबिक मां सरस्वती की पूजा-अर्चना का विधान है। जिन्हें ज्ञान की देवी भी कहा जाता है। साथ मे इस दिन पीले रंग को धारण करने का विधान भी है। वैसे पीले रंग को हिन्दू परम्परा में काफ़ी शुभ माना जाता है। वसंत पंचमी के दिन न सिर्फ़ पीले रंग के वस्त्र धारण किए जाते हैं, बल्कि खाने की चीजों में भी पीले चावल, केसर युक्त खीर औऱ पीले लड्डू का इस्तेमाल किया जाता है। इस दिन पूरा प्राकृतिक छटा पीलापन अपने में समाहित किए हुए दिखती है। वसंत का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि वसंत की शुरुआत होते ही चारों ओर का प्राकृतिक वातावरण हरा-भरा हो जाता है। आम के पेड़ों पर बौर लग जाते हैं। पेड़ों पर नए पत्ते आ जाते हैं। इसके साथ प्रकृति और खेत-खलिहान सब पीले-सुनहरे रंगो से सजे हुए मालूम पड़ते हैं। इस दिन युवक-युवती एक -दूसरे के माथे पर चंदन , हल्दी का तिलक लगाकर पूजा समारोह में हिस्सेदारी लेते हैं।

1– पीले रंग का महत्व क्यों–

हिन्दू रीति-रिवाजों में पीले रंग को बहुत ही शुभ माना गया है। पीला रंग समृद्धि, ऊर्जा और सौम्य- उष्मा आदि का प्रतीक माना जाता है। इस रंग को बसंती रंग भी कहा जाता है। पीले रंग की महत्ता का पता इस बात से चलता है, कि हिन्दू परम्परा में विवाह, मुंडन आदि शुभ अवसरों पर पूजा के कपड़े आदि को पीले रंग से ही रंगा जाता है। ग्रामीण परिवेश भी वसंत ऋतु के आरंभ में पीली सरसों के खेत, वातावरण में नई ऊर्जा का संचार करते हैं। इसके अलावा वसन्त पंचमी के अगले महीने फाल्गुन में ही रंगों का त्यौहार होली मनाई जाती है।

वसंत ऋतु में सरसों की फसल से धरती पीली-पीली नजर आती है। इस दिन हर आयु वर्ग के लोग उत्साह मनाते हैं। मौसम की बदलती करवट इस पर्व को और खुशनुमा बना देती है, क्योंकि ठंडी की अकड़न से वसंत ऋतु आने के बाद लोगों को राहत मिलनी शुरू हो जाती है, साथ में सूर्य भगवान भी अपनी रोशनी से वातावरण को सुनहरे रंगो में रंगना शुरू कर देते हैं। इस दिन सरस्वती पूजन के साथ पितृ-तर्पण औऱ कामदेव की भी पूजा करने का विधान है। इस दिन के महत्व का दायरा इतना विशाल है कि इस दिन पितृ-तर्पण भी किया जाता है। सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है। सरस्वती माता के हाथों में सुशोभित वीणा को संगीत की, पुस्तक को विचार की और मोर जिस आसन पर मां सरस्वती सवार होती हैं, उसे कला अभिव्यक्ति का केंद्र माना जाता है।

2– सरस्वती पूजन का विधान माघ महीने की पंचमी तिथि को ही क्यों —

माघ शुक्ल पंचमी के दिन प्रति वर्ष वसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन शिक्षण संस्थानों, कार्यालयों, और घरों में विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। मां सरस्वती को वीणावादनी भी कहा जाता है। इन्हें कला की देवी भी कहते हैं। इसलिए कला और साहित्य से जुड़े लोग इस दिन मां सरस्वती की विधिवत पूजा-अर्चना और वंदना करते हैं। इसके अलावा इस दिन पुस्तकों और क़लम की भी पूजा की जाती है।

सरस्वती पूजन का पर्व हर वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इसी दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था। हिन्दू पुराणों और शास्त्रों में वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा को लेकर एक बहुत ही रोचक कथा का वर्णन है, जिसके मुताबिक सृष्टि के प्रारंभ में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने मनुष्य योनि की रचना शुरू की। पर ब्रह्मा अपने सर्जना से संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि सारा वातावरण मूक सा औऱ उदासीनता पूर्ण था। चारों तरफ़ उदासीनता औऱ नकारात्मकता का माहौल छाया हुआ था। यह दृश्य देखकर ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल से पृथ्वी पर जल छिड़का। उन जलकणों के पड़ते ही एकाएक पेड़ों से एक शक्ति उत्पन्न हुई, जो दोनों हाथों से वीणा बजा रही थी तथा दो हाथों में पुस्तक और माला धारण की हुई थी। जिन्होंने जीवों को वाणी प्रदान की, और पूरा वातावरण खुशियों से आनंदित होकर झूम उठा। इसलिए उस शक्ति रूपी देवी को मां सरस्वती कहा गया।

3- वसंत ऋतुओं का राजा—

हमारी प्राचीन संस्कृति के अभिन्न अंग छह ऋतुएँ हैं। जिनमें से वसंत ऋतु सबसे मनमोहन और मदमस्त करने वाली ऋतु मानी जाती है, क्योंकि इस ऋतु की शुरुआत के साथ वातावरण कुछ अनुकूल परिवर्तनों का साक्षी बनता है, जो हमारे जीवन मे भी बदलाव का संकेत बनता है। वसन्त ऋतु की शुरुआत के साथ फूलों पर बहार आनी शुरू हो जाती है। खेतों में सरसों के पौधे पर फूल ऐसे चमकते हैं, जैसे चारों तरफ़ सोना बिखरा पड़ा हो। गेंहू और जौ की बालियाँ खिलने लगतीं हैं। आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता है। इसके साथ हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं हैं। इसीलिए वसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा कहा जाता है। सरस्वती पूजन का पर्व वसंत ऋतु के आगमन का सूचक होता है। इस दरमियान प्रकृति के अद्भुत और अनुपम छटा का अभिभूत होता है। सभी तरफ़ प्रकृति में छाई हुई सुस्ती दूर हो चुकी होती है, और सभी तरफ़ सिर्फ़ हरियाली औऱ चमक ही दिखाई पड़ती है। यह पर्व पूर्वी भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है , कि ऋतुओं में मैं बसंत हूं।

पतझड़ के बाद वसंत ऋतु आती है। वसंत ऋतु के आगमन के साथ प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो मानव , पशु-पक्षी भी उल्लास से भर उठते हैं। हर दिन सूरज नई उमंग औऱ उत्साह का संचार कराता है, क्योंकि ठंड के मौसम में कई कई दिनों तक सूरज की रोशनी देखने तक को नहीं मिलती है। वसंत की शुरुआत के साथ हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है।
 
4- वसंत पंचमी का ऐतिहासिक औऱ सामाजिक महत्व–

हमारा भारत देश संस्कृति औऱ सभ्यता का उद्गम स्थल है। हमारी संस्कृति में हर ऋतुओं का अपना- अपना महत्व है। इसके अलावा हमारे देश में व्रत और त्योहार ऋतुओं के साथ-साथ चलते हैं। वसंत ऋतु की पंचमी तिथि को सरस्वती पूजा का आयोजन किया जाता है, उसका सामाजिक ,पौराणिक और धार्मिक महत्व अलग-अलग है। इस दिन ज्ञान की देवी की आराधना की जाती है, तो संगम स्नान का भी अपना विशेष महत्व इस दिन रखता है। सामाजिक महत्व के रूप में देखें तो कहा जाता है, कि इसी दिन हम लोगों को शब्द शक्ति मिली थी, उसके पहले हम पृथ्वी पर होकर भी धरती के लिए बोझ समान थे, क्योंकि हम आपस मे बातचीत नहीं कर सकते थे। ऐसी मान्यता है, कि इसी दिन शब्दों की ताकत इंसान को मिली थी। इस दिन बच्चों के द्वारा विद्यारम्भ कराया जाना शुभ माना जाता है।इसके अलावा ऐसा माना जाता है, कि इस चराचर जगत में प्रत्येक मनुष्य और प्राणी के पास जो बुद्धि‍, विद्या और वाणी है, वह मां सरस्वती की ही देन है। उनकी बिना कृपा दृष्टि के इस जगत का कोई भी प्राणी न अपने भाव को व्यक्त कर सकता है, औऱ न ही लिख सकता है।

यह पर्व अपने भीतर अतीत की अनेक घटनाओं को भी समाहित किए हुए है। ऐसा कहा जाता है, जब भगवान श्रीराम अपनी धर्मपत्नी सीता की खोज में निकलें थे, तो वसंतपंचमी के दिन ही श्रीराम जी सबरी के आश्रम में पहुँचे थे, जहां पर उन्होंने सबरी के जुठे बेर खाए थे। ऐसे में यह पर्व प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक भी है। अगर इस पर्व के ऐतिहासिक महत्व को देखा जाए, तो ऐसी मान्यता है, कि इसी दिन पृथ्वीराज सिंह चौहान ने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी पर शब्दभेदी बाण चलाए थे, वह भी अंधे होते हुए भी, क्योंकि गौरी ने पहले ही पृथ्वीराज चौहान की आंखे फोड़वा दी थी, जो कि वीरता औऱ पराक्रम को दर्शाता है। वसंत पंचमी के दिन ही गुरू रामसिंह कूका का जन्म हुआ था। जिन्होंने कूका पंथ चलाया। इसके साथ उन्होंने स्वदेशी, नारी को सम्मान दिलाने, अंतरजातीय विवाह और गोरक्षा के लिए अथक कार्य किया। इसके अलावा छायावाद के चार रत्नों में से एक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म भी वसंत पंचमी के दिन ही हुआ था।

इसके अन्यत्र वसंत पंचमी पर मां सरस्वती के पूजन का एक कारण हिन्दू परम्पराओं के अनुसार और भी प्रचलित है। पुराणों के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण ने मां सरस्वती को यह वर दिया था कि वसंत पंचमी के दिन सभी स्थानों में उनकी आराधना की जाएगी। इसके बाद से ही वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती के पूजन का विधान है, जो अनवरत काल से चला आ रहा है। अगर वेदों में सरस्वती मां के वर्णन की बात की जाएं, तो ऋग्वेद में वाणी की देवी मां वीणावादनी का वर्णन इस प्रकार से किया गया है– “प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।” कहने का मतलब है, देवी स्वरूपा के रूप में मां सरस्वती के रूप में परम चेतना, हमारी बुद्ध‍ि, प्रज्ञा और सभी मनोवृत्त‍ियों का संरक्षण करती हैं। निहितार्थ हमारे भीतर जो गुण, विद्या और मेधा है । उनका आधार मां सरस्वती ही है, जिनकी समृद्धि‍ और स्वरूप का वैभव बड़ा ही अद्भुत औऱ निराला है।

5- मां सरस्वती के अन्य नाम–

मां सरस्वती को गायत्री, वीणावादनी, शारदा, कमला, और हंसवाहिनी के साथ बागीश्वरी, भगवती, और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पुकारा और पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी मानी जाती हैं। वसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। 

6– देश ही नहीं विदेशों में भी सरस्वती पूजन औऱ सरस्वती स्वरूप की महत्ता–

मां सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी कहा जाता है। वे बुद्धि, ज्ञान, विवेक और प्रज्ञा प्रदान करती हैं। इसलिए भारतीय संस्कृति में ही नहीं विदेशों में भी उनकी पूजा की जाती है। सिर्फ़ भेद नाम और पूजा पद्धति में भले हो सकता है। वसंत पंचमी की पूजा सिर्फ पूर्वी भारत में ही नहीं बल्कि पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई अन्य राष्ट्रों में बड़े उत्साह और उल्लास के साथ आयोजित की जाती है। बहुत कम लोगों को ही पता होगा, कि उगते सूरज की भूमि कहे जाने वाले देश जापान में भी माँ सरस्वती का मंदिर यानि निवास स्थान है। जापान के ओसाका शहर में सरस्वती माता का मन्दिर है, लेकिन जापान में मां सरस्वती को ज्ञान, कला की देवी न मानकर जल, शब्द, वाक्पटुता और समय की देवी के नाम से जाना जाता है। वीणावादनी की पूजा जापान में तालाब देवी के रूप में की जाती है, इसका कारण यह हो सकता है, कि सरस्वती एक पौराणिक नदी भी है। जापान में देवी सरस्वती का नाम बेंजाइटन है, जो एक जापान की बौद्ध देवी हैं। उनका स्वरूप हमारे पौराणिक कथाओं में वर्णित माँ सरस्वती से काफ़ी मिलता जुलता है।

मान्यताओं के मुताबिक जापान की बेंजाइटन देवी की पूजा 6-7वीं शताब्दी से शुरू हुई। जो कि एक विशाल कमल के फूल पर आसीन रहती हैं। जिनके हाथ में जापान की परंपरागत वीणा भी है, जिसे वीवा कहा जाता है। मां सरस्वती को ज्ञान और कला की देवी माना जाता है। विश्व के लगभग हर देशों में ज्ञान की देवी की परिकल्पना की गई है, बस उनका नाम और स्वरूप बदल जाता है। जर्मनी में स्नोत्र को ज्ञान, सदाचार और आत्मनियंत्रण की देवी माना जाता है। प्राचीन ग्रीक के एथेंस शहर की संरक्षक देवी एथेना को ज्ञान, साहस, कला, कानून, सभ्यता और जीत की देवी माना गया है। इसके अलावा फ्रांस, ऑस्ट्रिया, स्पेन, इंग्लैंड और अन्य यूरोपीय देशों में ज्ञान और कला की देवी के रूप में मिनर्वा का स्मरण किया जाता है।

पुराणों और धर्म ग्रन्थों में मां सरस्वती के रंग रूप को शुक्लवर्णा और श्वेतवस्त्रधारणी बताया गया है। सदियों से मां सरस्वती की पूजा भारत और नेपाल में होती आ रहीं है। माघ पंचमी जिसे वसंतपंचमी भी कहते हैं, उस दिन सरस्वती माता की विशेष पूजा अर्चना होती है। मां सरस्वती की पूजा केवल नेपाल और भारत में ही नहीं बल्कि इंडोनेशिया, बर्मा, जापान और थाईलैंड जैसे देशों में भी होती है। मां सरस्वती को बर्मा में थुयथदी, सुरस्सती और तिपिटक के नाम से जाना जाता है। चीन में बियानचाइत्यान के नाम से और थाईलैंड में सुरसवदी नाम से पुकारा जाता है।

अंत में हम कह सकते हैं, कि सब धर्म, नीति, बुद्धि, दर्शन, साहित्य और कलाएं मनुष्य में अलग अलग हो सकती हैं। परन्तु अपने समष्टि रूप में वे एक विराट तत्व में लीन है, उसी महती शक्ति को हम मां सरस्वती कहते हैं।

महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896