सामाजिक

बुफे सिस्टम में अन्न की बर्बादी

आज के वर्तमान समय में किसी भी सामूहिक भोज को आयोजित करते समय बुफे सिस्टम को ही वरीयता दी जाती है | जिसको अपनाने के कई कारण है, जिनमें सबसे प्रमुख तो यही है कि सहयोग प्रदान करने वाले साथियों का सीमित समय के लिए सीमित मात्रा में उपलब्ध होना | इसके अतिरिक्त इस तरह की दावत छोटी जगह में भी सम्पन्न की जा सकती है | पत्तल वाली दावत में तो जगह भी पूरी होनी चाहिए साथ ही कार्यकर्ता भी पूरी मुस्तेदी वाले होने चाहिए | इसलिए इस सब के आभाव में बुफे सिस्टम को अपनाना कहीं न कहीं मजबूरी भी बन गया है |

दावत चाहे अपनी कालोनी या मोहल्ले की हो या किसी विशाल भू खंड पर बने मेरिज होम की, दावत के समय नज़ारा एक सा ही होता है | परिसर में घुसते ही चारों ओर पंडाल ही पंडाल नजर आते हैं | अब ध्यान से देखना पड़ता है कि भई आखिर शुरुआत कहाँ से करी जाये | आपके बायीं ओर अगर फ्रूट चाट का स्टाल है तो हो सकता है, उसी के बगल में ड्रिंक्स की व्यवस्था लगी हो | अभी तो खाना बहुत दूर है, उससे पहले ढेर सारे स्टाल आपका स्वागत करने को तैयार होते हैं | चाहे वो पाव भाजी हो, या फिर पिज़्ज़ा, कुछ नहीं तो चीला-डोसा ही क्यों न हो | हर स्टाल पर भयंकर भीड़ मिलेगी | किसी भी स्टाल पर कोशिश कर ले बिना हाथ पैर मारे, राजी राजी आयटम नहीं पा सकते | हर स्टाल पर भीड़ अलग अलग तरह की पाएंगे | पानी-पूरी और आलू टिक्की पर अगर महिलाओ का राज होता है तो चाउमीन वाला बच्चों की जल्दबाजी से हांफ सा रहा होता है | वहीँ युवक युवतियां पिज़्ज़ा पाने को हर जौहर करने को आतुर होते हैं, कभी कभी तो ऐसा भी होता है कि कोई उस भीड़ में घुसकर अपनी प्लेट में पिज़्ज़ा धरवा कर अपना हाथ ऊँचा कर बाहर आने की कोशिश में होता है, पता चलता है कि पीछे से किसी बन्दे ने उसकी प्लेट से वो पिज़्ज़ा ही साफ कर दिया, और उसे पता ही नहीं चला, जब पता चला तबतक भीड़ से वो काफी अलग हो चुका था | ऐसे ही मिठाई वाले स्टाल पर ऐसे बुजुर्ग या महिला पुरुष भी मिल जायेंगें जो अपने परिवार से अलग हो मिष्ठान का आनन्द ले रहे होते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि घर में तो कोई मीठा खाने नहीं देता | बाकी आगे तो आप जानते ही हैं |

आधा अधुरा पेट तो यहीं भर जाता है | फिर भी निगाहें खाने वाला पंडाल खोज ही लेती हैं और खाने में क्या क्या है ये जानने के लिए, कदम खुद ब खुद उस ओर निकल ही लेते हैं | यहाँ का नज़ारा तो और भी अधिक रोचक होता है |

एकदम बीचोबीच रखी टेबल से प्लेट उठाई जाती है, साथ में लगा नेपकिन पता नहीं पकड़ा या मसोस कर वहीँ फेंक दिया जाता है | अपने चम्मच से बड़ी ही नजाकत से सलाद उठाई जाती है, कहीं गाजर दो टुकड़े से ज्यादा न आ जाये या फिर कहीं चम्मच में प्याज के छल्ले न लटक जायें | फिर रुख होता सब्जियों की तरफ | इससे पहले मन चाह आचार भी ले लिया , बेशक लेते समय पता नहीं था कि इतने सारे आचारों में नीबू का कौन सा था या आम का किधर रखा था |

क्या बात है, खाने की टेबल पर तो जैसे सब्जियां लाइन में रखी हैं बैसे ही लेने वाले भी लाइन में लगे है | फिर भी कुछ जल्दबाज या वो जो भोजन करने की प्रक्रिया में हैं, लाइन के बीच में घुस कर अपनी आवश्यकता पूरी करने को आतुर रहते हैं | इसमें चाहे किसी का कोट बिगड़े या फिर साड़ी | यहाँ तक तो फिर ठीक होता है, असल मुसीबत तो तब होती है जब प्लेट में खाना लेने के बाद वहीं टेबल के नजदीक ही खाना शुरू कर दिया जाता है | जिससे पीछे वालो को आगे बढने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है | सही तरीका तो ये होता है कि प्लेट में अपनी इच्छा अनुसार भोजन लेने के बाद पंडाल के खाली हिस्से में जाकर सुकून से खाना खाया जाये | ताकि नए लोगों को किसी असुबिधा का सामना न करना पड़े | और अपने मेल-मिलाप वालों से मुलाकात भी चलती रहे | किन्तु यही वो जगह होती है जहाँ खाद्य सामग्री की सबसे अधिक बर्बादी देखी जा सकती है | बच्चा हो या बड़ा, हर शख्श का प्रयास होता है कि पहली बार में ही सारा सामान अपनी प्लेट में रख ले | उसमें से वह कितना खा पायेगा, इसका पता तो खुद उसे भी नहीं होता है | इस चाह में कि अभी तो मीठा भी खाना है, थोड़ी देर मे वही प्लेट थोड़ी “कमी-वेशी” के साथ बीच में रखे टब में सबकी निगाह बचाते हुए सरका दी जाती है | क्यूंकि पेट तो पहले ही विभिन्न स्टालों के आयटम से भर चुका होता है | उस समय भी प्लेट में इतनी भोजन सामग्री होती है कि कम से कम एक भूखा इन्सान अपनी भूख शांत कर सके | किन्तु मेहमान इस बर्बादी की कतई परवाह नहीं करते | और मीठे व्यंजन का आनंद लेते हुए अंत में दूध या काफी की खोज में लग जाते हैं |

क्या हमें अन्न की बर्बादी के प्रति सचेत नहीं होना चाहिए | बच्चो को अपनी निगरानी में खाना खिलाना चाहिए | हमें वो मासूम चेहरे नहीं भूलने चाहिए जिन्हें अन्न का एक एक दाना भारी मशक्कत के बाद नसीब होता है | यदि पत्तल वाली दावत में व्यवस्था की जिम्मेदारी मेजवान की होती है तो इस प्रकार की दावत में अव्यवस्था फ़ैलाने में मेहमान का असंगत आचरण होता है | इसके प्रति सभी की सचेत रहना चाहिए |

अंत में, मैं यही कहना चाहूँगा कि दावत किसी भी प्रकार की हो, चाहे पत्तल वाली हो या बुफे सिस्टम की | मेहमान को भी थोड़ी शालीनता का परिचय देते हुए एवं सामाजिक जिम्मेदारी निभाते हुए उत्सव की गरिमा बनाये रखनी चाहिए और किसी भी प्रकार की बर्बादी को रोकने में सहयोग करना चाहिए |

उमाकान्त श्रीवास्तव

आयु 48 वर्ष वर्तमान में एक निजी संस्थान ARVSONS में HR मैनेजर के रूप में कार्यरत। इससे पूर्व रघुनंदन मनी में भी लगभग 8 वर्ष HR का कार्य देखा। 387, पश्चिम पुरी, शास्त्रीपुरम रोड, आगरा 282007 मोबाइल : 9410833909