लघुकथा

एक मुट्ठी आसमान

आज धावक रोजर बैनिस्टर के पास था एक मुट्ठी आसमान और उगते सूरज की लालिमा का मनोरम दृश्य. उसका सपना था-

 

”हर कोई चाहता है एक मुट्ठी आसमान,

चाहता है मुट्ठी में हो सारा जहान.”

 

सचमुच ऐसा चाहने वाला इसके लिए भरपूर प्रयत्न भी करता है. साहसी रोजर बैनिस्टर ने अपनी सोच के कमाल से असंभव को भी संभव कर दिखाया. एक समय था, जब चार मिनट में एक मील तक दौड़ना नामुनकिन कार्य माना जाता था, लेकिन धावक रोजर बैनिस्टर ने इस भ्रम को तोड़ दिया. उसने 3:59 मिनट में दौड़कर यह दूरी तय की. उसने अपनी जीत का मानसिक चित्रण किया, जिससे शरीर की नर्वस प्रणाली ने इस प्रकार सिग्नल ग्रहण किए, कि उसे यह विश्वास हो गया कि मुझे सफलता जरूरी मिलेगी. रात के घनघोर अंधेरे के बाद उगते सूरज की लालिमा उसकी प्रेरणा बनी थी. बैनिस्टर की सफलता ने दूसरे धावकों के लिए भी रास्ते खोल दिए.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “एक मुट्ठी आसमान

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    a big salute to bainstar lila bahan .

  • लीला तिवानी

    बैनिस्टर का साहस से सफलता तक पहुंचना और एक मुट्ठी आसमान पाना उसकी लगन और साहस से संभव हो सका-
    वक्त़ आएगा अच्छा कभी हमारा भी,
    दिल में उम्मीद के चिराग जलाते रहिए.

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