राजनीति

भारतीय गणतंत्र पर ग्रहण लगाते दबाव समूह

अब्राहम लिंकन ने प्रजातंत्र को परिभाषित करते हुए कहा था कि लोकतंत्र जनता का ,जनता के लिए और जनता द्वारा की जाने वाली शासन व्यवस्था है।कहने को यह जनता द्वारा की जाने वाली शासन व्यवस्था है लेकिन यह भी उतना ही सही है कि शासन संचालन में जनता की प्रत्यक्ष भूमिका नहीं रहती है।अपने प्रतिनिधियों का चुनाव कर शासन संचालन का भार जनता उन्हें सौंप देती है।प्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक दल ही जनता की ओर से स्वयं शासन संचालन करते हैं।लोकतंत्र में जितना महत्व राजनीतिक दलों का होता है उतना ही महत्व दबाव समूहों का रहता है।दबाव समूह ऐसे हित समूह होते हैं जो सामान्यतः सार्वजनिक नीतियों को प्रभावित करते हैं तथा कुछ विशेष हितों को सुरक्षित करने और नीति निर्धारण में सरकार की सहायता करते हैं।ये किसी भी राजनीतिक दल से गठबन्धन नहीं करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करते हैं किन्तु इनके प्रभाव और शक्ति से इंकार नहीं किया जा सकता।
दबाव समूह विभिन्न समुदायों,वर्गों की मांगों और हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं और लोगों को राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और इसीलिए भारत जैसे बहुलवादी और विविधता वाले देश में इनकी अलग ही महत्ता है।दबाव समूह मतदाताओं को शिक्षित करने, सूचित करने और लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।दबाव समूह के माध्यम से ही विशेष मुद्दों पर जनता की राय कायम की जा सकती है और ज्ञात भी की जा सकती है।
इस प्रकार से दबाव समूह एक ऐसा संरचित समूह होता है जिसका लक्ष्य आम आदमी से सम्बन्धित हितों के लिए सरकारी और सार्वजनिक नीति को प्रभावित करना या आम लोगों से सम्बन्धित एक विशेष लक्ष्य की रक्षा करना होता है।दबाव समूह सरकार और जनता के बीच एक कड़ी के रूप में काम करते हैं और एक विशिष्ट मुद्दे को बढ़ावा देते हैं तथा राजनीतिक एजेंडे से इसे ऊपर उठाने अथवा चुनाव प्रचार के दौरान उठाये गये सामान्य राजनीतिक और वैचारिक उद्देश्यों को धरातल पर लाने के लिए मुद्दे उठाते हैं।ये समूह सरकार को जवाबदेही के मंच पर लाने का प्रयास करते हैं।आम तौर पर ये गैरलाभकारी और स्वयंसेवी संगठन होते हैं लेकिन वास्तव में हमारे देश में ऐसा नहीं है।
दबाव समूह उन व्यक्तियों का समूह होता है जो जातीयता,धर्म,पंथ ,सम्प्रदाय,राजनीतिक दर्शन या एक समान लक्ष्य के आधार पर मूल्यों के लिए संघर्ष करते हैं लेकिन हमारे देश में ये समूह मूल्यविहीन दिशा में जा रहे हैं।दबाव समूह सामान्यतः उन लोगों के विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो समाज की मौजूदा परिस्थितियों से असंतुष्ट होते हैं, ये उन हितकारी समुदायों के स्वाभाविक परिणाम हैं जो सभी समाजों में विद्यमान रहते हैं।दबाव समूह राजनीतिक दलों से भिन्न होते हैं।राजनीतिक दल जनता द्वारा चुनकर आने के बाद परिवर्तन करना चाहते हैं जबकि दबाव समूह राजनीतिक दलों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं।इस तरह से दबाव समूह व्यापक रूप से लोकतांत्रिक प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं लेकिन भारत में घालमेलपूर्ण स्थिति निर्मित हो गई है।
निश्चित ही दबाव समूहों का वर्तमान राजनीतिक व्यवस्थाओं में विशेष महत्व है।इन्हें हित समूह ,औपचारिक संगठन भी कहा गया है।हालांकि प्रत्येक समाज में अनेक प्रकार के संगठन होते हैं जो कि वर्ग ,समूह या समुदाय विशेष की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं लेकिन ये सभी दबाव समूह की श्रेणी में नहीं आते हैं।दबाव समूह के बारे में कहा जाता है कि जब कोई संगठन अपने सदस्यों के हितों की पूर्ति के लिए राजनीतिक सत्ता को प्रभावित करता है और उसकी पूर्ति के लिए दबाव डालता है तो उस संगठन को दबाव समूह कहते हैं।विकसित लोकतांत्रिक देशों यथा अमेरिका,इंगलैण्ड,फ्रांस,जर्मनी आदि देशों में दबाव समूहों का लोकतंत्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है साथ ही शासन संचालन में भी वे विशेष भूमिका निभाते हैं।उनकी राय को विशेष महत्व दिया जाता है।हालांकि भारत में भी विभिन्न दबाव समूहों का अस्तित्व है ।इन दबाव समूहों को लोकतंत्र का पोषक व सहयोगी समझा गया था।इनकी राजनीतिक क्षेत्र के साथ ही नीति निर्धारण और शासन संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है लेकिन वर्तमान परिस्थियों में सुसंगठित और प्रभावशाली दबाव समूहों को हेय दृष्टि से देखा जाने लगा है क्योंकि ये सरकार को गिराने और अपने निज स्वार्थो की पूर्ति के अड्डे बन गये है,परिणामस्वरूप लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा माने जाने लगे हैं।
वैसे हमारे देश में दबाव समूहों का अस्तित्व स्वतंत्रता पूर्व से ही रहा है।भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थिति भी स्वतंत्रता के पूर्व एक दबाव समूह के रूप में ही रही जिसका उद्देश्य भारतीयों के हितों का प्रतिनिधित्व करना था।मुस्लिम लीग की स्थापना भी इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर की गई थी।स्वतंत्रता के पश्चात देश में विभिन्न दबाव समूह बनें।प्रत्येक संगठन व संस्थाओं द्वारा विभिन्न दबाव समूहों का गठन किया गया।कुछ दबाव समूहों का गठन अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक दलों द्वारा ही किया गया था। इन दबाव समूहों का मुख्य उद्देश्य अपने हितों का प्रतिनिधित्व और उनका संरक्षण करना रहा था।अभी देश में विभिन्न दबाव समूहों की उपस्थिति है यथा मजदूर संघ, किसान संगठन ,महिला संगठन,व्यापारी संगठन,विद्यार्थी संगठन।इनके अपने कार्यक्रम और आधार है लेकिन इनमें आपसी बिखराव और टकराव की भी स्थिति है जो स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए घातक है।
हमारे देश में हर वर्ग,जाति,धर्म,समुदाय के दबाव समूह हैं।व्यापार समूह,व्यापार संघ,कृषि समूह,व्यावसायिक संघ,छात्र संगठन,धार्मिक संगठन,जाति संगठन ,जनजातीय संगठन,भाषाई समूह तो विद्यमान हैं ही।कुछ विचारधारा और कार्यक्रम आधारित समूह भी हैं।यहाँ प्रश्न यही है कि क्या देश में इतने दबाव समूह मौजूद हैं तो ये लोकतंत्र के वाहक हैं!लोकतंत्र के विकास में सहायक हैं?सामान्यतः दबाव समूहों की प्रकृति का निर्धारक तत्व राजनीतिक सोच,विचार और कार्यशैली होता है।इंगलैण्ड के लोग विकास में विश्वास करते हैं, उनका अपनी परम्पराओं से गहरा लगाव है अतएव वहाँ दबाव समूह व्यवस्था के पूरक के रूप में कार्य करते हैं तथा व्यवस्थापिका को हर प्रकार से सहायता देते हैं।इसके विपरीत फ्रांस के लोग बड़े ही क्रांतिकारी स्वभाव के होते हैं, अतः यहाँ दबाव समूह व्यवस्थाओं में परिवर्तन को महत्व देते हैं।स्पष्टतः दबाव समूह लोकतंत्र के रक्षक और संचालक तत्व हैं लेकिन हमारे देश में दबाव समूहों ने लोकतंत्र को नुकसान पहुँचाना प्रारम्भ कर दिया है।दबाव समूहों के अपने आधार,विश्वास ,कार्यक्रम विरोधाभासी स्वरूप के हैं तथा वे आपसी वैमनस्य तथा टकराव की स्थिति पैदा करने वाले हैं।एक ही उद्देश्य के लिए कई दबाव समूह खड़े हो गए हैं और इनमें आपसी टकराव की स्थिति है।अतः ये उद्देश्य पूर्ति में भी बाधक बन रहे हैं।ऐसे में इनके आंदोलन हिंसक होने के साथ ही सरकार के नीति निर्धारण में भी विभेदकारी स्थिति निर्मित कर रहे हैं।
यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि दबाव समूह अपने वास्तविक अर्थ में और अपनी वास्तविक प्रकृति में लोकतंत्र की ही उपज है इस बात को हमें समझना होगा।लोकतंत्र जितना स्वस्थ्य होगा,उसके नागरिकों में उतनी ही अधिक स्फूर्ति होगी और वे अपनी मांगों के लिए समूह के माध्यम से अनुनय,विनय,विनती,प्रतिवेदन देकर सरकार को नीति निर्धारण में सहायता करेंगे अन्यथा स्थिति में वे आंदोलनात्मक रूप ग्रहण करेंगे।जुलूस,हड़ताल,बंद,सभाएँ,सम्मेलन,मीडिया के माध्यम से दुषप्रचार करना ये सब उन्मुक्त लोकतंत्रों में स्वतंत्र नागरिकों के अधिकार होकर विकृतिपूर्ण स्थिति है जो कि भारतीय गणतंत्र पर ग्रहण का काम कर रही है।अत्यधिक गरीबी,जातिवाद,वर्गभेद,वर्ग संघर्ष,धर्म,पंथ,सम्प्रदाय,सामंतवाद,प्रादेशिकता,क्षेत्रीयता,भाषाई विवाद की स्थिति लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं।दबाव समूहों में साधन और साध्य की पवित्रता पर सहमति का पूर्ण अभाव है जिसके कारण अनेक अपसंस्कृति विकसित हो रही है और उग्र संघर्ष में परिवर्तित हो रही है।व्यवस्था में वैधानिक,कानूनी बाध्यताओं की आड़ में शासन पक्ष की ढीठता तथा दबाव समूहों के दुराग्रह के परिणामस्वरूप अधिकांशतः बन्द,हिंसा,तोड़फोड़ की गतिविधियों में वृद्धि हो रही है।हाल ही के आरक्षण की मांग,किसान आंदोलन,पद्मावती फिल्म को लेकर होने वाले हिंसक प्रदर्शन इसके उदाहरण हैं।दबाव समूह प्रदर्शनात्मक अधिक हो गए हैं, नारेबाजी,हिंसा,तोड़फोड़ मांग मनवाने के हथियार हो गए हैं जो कि किसी भी लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था के अनुकूल नहीं कहे जा सकते।निश्चित तौर पर देश में दबाव समूहों ने लोकतंत्र के चारों महत्वपूर्ण स्तम्भों को बुरी तरह से प्रभावित करना प्रारम्भ कर दिया है जिसका परिणाम भारतीय लोकतंत्र पर ग्रहण के रूप में परिलक्षित हो रहा है।यदि समय रहते हम नहीं चेते तो लोकतंत्र के भीड़तंत्र में परिवर्तित होने में अधिक समय नहीं लगेगा।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009