लघुकथा

लघुकथा -स्टेण्डर्ड

देखिये मिसेस रस्तोगी,मैंने आपही के कहने पर चमकी को इस वाली बीसी में मेम्बर बनाया था।आपही ने तो कहा था कि पिछली वाली बीसी में केवल बारह मेम्बर थे।इस बार कॉलोनी के कम से कम बीस सदस्य तो होना ही चाहिए,”जीजी ने उनसे थोड़ा तैश में आते हुए कहा।
“जीजी,ठीक है हमें सदस्य तो बढ़ाना थे लेकिन सदस्य कम से कम अपने स्टेण्डर्ड के तो हों।अब देखिये,चमकी हम लोगों के ही घरों में काम करती है और उसका घर भी झोपड़पट्टीनुमा है,भले ही वह हमारी कॉलोनी में रह रही हो।बीसी वाले दिन हम सदस्यों के घर ही तो चाय-नाश्ता करते हैं।क्या चमकी के घर हम चाय-नाश्ता कर सकते हैं!नहीं न!”मिसेस रस्तोगी ने कहा
इसी बीच उनके बहू-बेटे ने कक्ष में प्रवेश किया तो मिसेस रस्तोगी उनकी ओर मुखातिब होते हुए बोली- “बेटा कहाँ से आ रहे हो?”
“मम्मी बस यहीं से,हम चमकी आंटी के यहाँ से आ रहे हैं।उनकी बेटी के रिश्ते की बात के लिए कुछ लोग आये थे तो हमें भी बुला लिया था।आज उन्होंने दाल-बाफले और लड्डू बनाये थे।वास्तव में कितना स्वादिष्ट भोजन बनता है उनके यहाँ।हम तो खाते ही रह गए।”बहू ने जवाब दिया।
उधर जीजी मिसेस रस्तोगी के चेहरे पर आये भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थीं।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009