बाल कविताशिशुगीत

चाहो जो देश का हित

मिट्टी की सौंधी खुशबू,
जो गीत गा रही है,
उस गीत से वतन की,
मृदु गंध आ रही है.
मिट्टी के इन कणों से,
केवल बना न तन है,
सुख-दुख मिले इसी से,
इस से तरंगित मन है.

 

तारों की होती झिलमिल,
कुछ गुनगुना रही है,
इस गुनगुनाहट में भी,
आवाज देश की है.
ये झिलमिलाते तारे,
हमको बता रहे हैं,
स्वाधीनता संभालो,
गद्दार छा रहे हैं.

 

झरने की मीठी झर-झर,
कुछ तो सुना रही है,
यह झरझराती धारा,
सबको सिखा रही है.
चलते रहो निरंतर,
चाहो जो देश का हित,
अपना भला भी चाहो,
कल्याण देश का नित.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “चाहो जो देश का हित

  • लीला तिवानी

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