लघुकथा

हाथी के दांत

   सना ! हां ! यही नाम था उसका । एक उभरती हुई लेखिका । उसकी लिखी कहानियां पाठकों को झकझोर देती थीं । नैतिकता , आदर्श व्यवहार अपनाने को प्रेरित करती उसकी रचनाओं में सामाजिक बुराइयों पर जम कर प्रहार किया जाता । पाठकों की जमकर तारीफ भी उसके हिस्से मिलती । आज उसने बुजुर्गों का सम्मान किये जाने का संदेश देते हुए एक बहुत ही बढ़िया कहानी पोस्ट की थी ।      पैदल ही घर की तरफ बढ़ती हुई सना  मोबाइल पर पाठकों की तारीफ भरी प्रतिक्रियाएं पढ़कर गदगद थी । उसका पूरा ध्यान मोबाइल पर ही था कि अचानक उससे कोई जोर से टकराया और मोबाइल उसके हाथों से गिरते गिरते बचा । गुस्से से बिफरते हुए वह चीखी ” बुड्ढे ! खूसट ! देख कर नहीं चल सकता क्या ? अंधा है क्या ? “
 उसकी टक्कर से गिरा हुआ वह वृद्ध अपने हाथों को जमीन पर फैलाकर अपनी छड़ी ढूंढने की कोशिश करते हुए बोला ” हां बेटी ! अंधा ही हूँ ! तुम्हें चोट तो नहीं लगी ? “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “हाथी के दांत

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, यथार्थ को बयान करती हुई लघुकथा बहुत खूबसूरत और नायाब लगी. सच है हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और होते हैं. अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

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