कविता

चाची को मूंछें होती तो

पान चबाकर पीकों से,
चाचा होंठ किये हैं लाल।
दाढ़ी संग है मूंछ मुड़ाये,
चाचा के हैं चिकने गाल।।

चाचा वाला रुप नहीं जब,
चाचा क्योंकर कहता मैं।
चाची को मूंछें होती तो,
चाचा उनको कहता मैं।।

चेहरे पर हैं क्रीम लगाते,
जुल्फें लहराकर चलते।
नाखून बढ़ाया हाथों का,
पालिस लगाया करते हैं।।

उनसे अच्छी तो चाची हैं,
उनके बाल घने काले।
झाडू लेकर साफ करे-
जो घर में हैं बने जाले।।

चाचा के वस्त्र पहनती हैं,
जब भी धोने को मिलता है।
तब चूड़ी कंगन माथे बिंदी,
उनपर नहीं खिलता है।।

चाचा के कपड़े पहने वो,
सीना तान खड़ी होती।
खिलता हुआ वदन लेकर,
दर्पण पास खड़ी होती।।

अलग खुशी चेहरे की ये,
कभी समझ ना पाया मैं।
चाची क्यों खुश होती थी,
अभी समझ हां पाया मैं।।

चाची के पापा जब उनको,
बेटा कह के बुलाते थे।
बेटा-बेटी के अंतर को तब,
सहज भाव से मिटाते थे।।

।। प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं