बाल कविताशिशुगीत

मिठाई और रेखागणित

बरफी होती है चौकोर,
मुझको बहुत सुहाती है,
मीठी-मीठी, ताजी-ताजी,
मुझे बहुत ही भाती है.

 

लड्डू होता दानेदार,
बड़े मजे से खाती हूं,
ममी से दस पैसे लेकर,
लड्डू गोल ले आती हूं.

 

पीली-पीली गोल-गोल वो,
रस में डूबी रहती है,
एक चवन्नी पापा दें तो,
एक इमरती मिलती है.

 

रस्गुल्ले की क्या बतलाऊं!
इसकी महिमा न्यारी है,
गोल भी होता बेलनाकार भी,
रस से भरी पिटारी है.

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यह बाल गीत लगभग 55 साल पहले का का लिखा हुआ है. उस समय लड्डू दस पैसे में और इमरती चार आने में मिलती थी. आज तो इतनी सस्ती मिठाई की कल्पना करना भी मुश्किल है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “मिठाई और रेखागणित

  • लीला तिवानी

    ममी मुझको दस पैसे दो,
    लड्डू मैं ले आऊंगी,
    आधा लड्डू मैं खाऊंगी,
    आधा तुम्हें खिलाऊंगी.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , बाल गीत बहुत अच्छा है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

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