लघुकथा

नसीहत

” अजी सुनते हो ! रश्मि अभी तक कॉलेज से नहीं आयी है । उसका कॉलेज छूटे हुए भी दो घंटे से ज्यादा का समय हो चुका है । मेरा तो दिल घबरा रहा है । ” सुषमा की घबराई हुई आवाज सुनकर रोहित का दिल जोरों से धड़क उठा । परसों दोपहर का दृश्य उसकी नजरों के सामने घूम गया ।
फैक्ट्री से अपनी कार से घर आते हुए रोहित को  कॉलोनी से पहले सुनसान इलाके में एक लड़की बदहवास सी भागती हुई दिखी । रोहित ने उसके नजदीक ही कार रोक दी । बदहवास लड़की कार रुकते ही उसकी तरफ भागी थी और ‘ बचा लो ‘ कहते हुए उसके सामने गिड़गिड़ा पड़ी थी ।  रोहित अभी कुछ समझ पाता कि तभी दो लफंगे से दिख रहे लड़के दौड़ते हुए आये और उस लड़की की कलाई पकड़ कर जबरदस्ती उसे सड़क के नीचे झाड़ियों की तरफ घसीट ले गए । रोहित चाहकर भी उसकी मदद नहीं कर सका । कुछ मिनटों बाद लड़की की चीखें सुनकर उसकी रूह कांप उठी लेकिन वह उन दो लफंगों से भिड़ने का साहस नहीं कर सका था । कौन कानूनी पचड़े में फंसे यही सोचकर उसने इस घटना की चर्चा किसी से नहीं की थी ।
रश्मि के अभी तक घर न पहुंचने की बात से परसों की घटना का स्मरण होते ही उसके मस्तिष्क में कौंधा  ‘ अगर उस लड़की की जगह रश्मि होती तो ? ‘
 कुछ ही मिनटों में तैयार होकर वह अपनी कार में बैठ रहा था कि तभी रश्मि पहुँच गयी ।
रोहित ने कार स्टार्ट करके जैसे ही आगे बढ़ाना चाहा सुषमा बोल पड़ी ,” रश्मि तो आ गयी । अब किसे खोजने जा रहे हो ? “
 ” एक जरुरी काम याद आ गया है । थोड़ी देर में आता हूँ । ” कहकर उसने कार आगे बढ़ा दी ।
उसकी कार शहर के पुलिस स्टेशन की तरफ तीव्र गति से बढ़ रही थी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “नसीहत

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, किसी की मदद न करके आगे चल देना ही आज के समाज की नियति हो गई है, जिसका आभास खुद पर आई स्थिति के बाद होता है. अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

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