गीतिका/ग़ज़ल

‘गज़ल”

वक्त को मिलने गया शय आसमां हो जाएगा

छल गया उस जगह जाकर क्या खुदा हो जाएगा

आप की नाराजगी है जो शहर भाती नहीं

फेर कर भागे नयन क्या आईना हो जाएगा॥

भूल थी अपनी जगह राहें गईं अपनी जगह

आदमी है आदमी क्या हौसला हो जाएगा।।

छल कपट अपना नहीं तो हम भला करते ही क्यूँ

दुख रहा है दिल दरद किसका दवा हो जाएगा।।

बस रहें है नव महल दरिया किनारे जानकर

इक लहर यदि आ गई तो क्या सुबा हो जाएगा।।

बाँधना मुश्किल बहुत है सेतु अपने आप पर

मिल गई नौका नहर क्या रास्ता हो जाएगा।।

गौतम चला जिस जगह से फिर वहीं पर आ गया

भीड़ का मजमा हुआ क्या कारवां हो जाएगा।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ