लघुकथा

और राहें सरल हो गईं

अन्य सभी इंसानों की तरह रामरखी भी कभी-कभी विचारों में खो जाया करती थी. कभी दुःख की बोझिल परतें उसके विचारों की लय की गति धीमी कर देती थी और समय काटे नहीं कटता था, कभी सुख और शुकराने की सुखद परतें उसको हल्का कर हवा में उड़ा ले जाती थीं, तब समय भी पंछी-सा उड़ जाता था. यों आमतौर से रामरखी ने अपने जीने की राहें सरल कर रखी थीं. अंग्रेज़ी के एक भारी-भरकम सुविचार को उसने सहज करके आत्मसात कर लिया था- होइ हैं सोई, जो राम रचि राखा. ईश्वर के हर रूप की छवि में उसे राम दिखाई देता था, तभी तो वह रामरखी थी! उसे याद आता था- पति, दो बेटों, बहू-पोते वाला भरा-पूरा परिवार पिकनिक पर गया था. वह पोते को संभाल रही थी, बहू और दोनों बेटे स्विमिंग पूल में स्विमिंग कर रहे थे. अचानक एक हादसा और छोटे को बचाते-बचाते, बड़े बेटे का डूब जाना, अकस्मात बहू को मायके वालों का ले जाना, स्वभावतः पोते का भी साथ में जाना, चार दिन बाद पति का परलोक सिधार जाना, उफ्फ़! भरे-पूरे परिवार में बस रामरखी और छोटा!

 

लेकिन ज़िंदगी में क्या इतना ही होता है? रात के घनघोर अंधकार के बाद सूर्य उदय होता है, नया सवेरा आता है, सबके विदा हो जाने के बाद रेवती भी मिलती है. कौन थी रेवती? अनजानी युवती. जेठ की तपती लू वाली दुपहरी में रामरखी हाथ में प्लास्टर बंधवाए एक नर्सिंग होम के बाहर ऑटो की प्रतीक्षा कर रही थी. अचानक एक कार उसके सामने से निकल जाती है, फिर पीछे आती है. ”आंटी जी, आपको सवारी चाहिए? आइए, मैं आपको आपके गंतव्य पर पहुंचा देती हूं.” युवती ने कार से उतरकर उसे सहारा देकर आगे की सीट पर बिठा लिया. जेठ की गर्मी, ठंडक में परिवर्तित हो गई थी. यह शीतलता महज कार की ए.सी. की ही नहीं, रेवती की सीरत की भी थी. यह ठंडक रामरखी के दिल की अंदर की परतों तक को शीतल कर गई थी. रेवती उसे घर पहुंचाकर, चाय पिलाकर चली गई थी. उसे अपना फोन नं. भी दे गई थी, ताकि ज़रूरत पड़ने पर वह उसे बुला सके.

 

शाम को रामरखी उसका धन्यवाद करने छोटे के साथ उसके घर गई थी. वहां जाकर पता चला, रेवती अभी अविवाहित थी. रामरखी ने उसकी मां से छोटे के लिए मांग ली. उसी समय उसे बहू बनाकर घर ले गई. रेवती की सुहानी सीरत से अब रामरखी की राहें फिर सरल हो गईं थीं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “और राहें सरल हो गईं

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सुन्दर लघु कथा ,लीला बहन .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    शायद निश्छल-आत्मिक प्रेम का ऐसा दिन ही वेलेंटाइन डे कहलाता है. सीरत सुहानी हो, तो राहें सरल हो जाती हैं. रेवती ने सबको ऐसा ही वेलेंटाइन डे मनवादिया था.

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