सामाजिक

लेख– बजट में कुछ योजनाएं अच्छी, लेकिन धरातल पर कैसे आएगी ?

अगर राजनीतिक दल सिर्फ़ चुनावी जुमलों औऱ आपसी आक्षेप की राजनीति में ही उलझे रहेंगे, फ़िर समाज के अंतिम व्यक्ति तक उजाले की किरण कैसे पहुंचेगी? हां अगर मोदी सरकार ने अपने शुरुआती शासनकाल के वक्त में किसानों की आय दुगनी करने की बात की, औऱ 2018 का आखिरी सरकार का पूर्ण बजट आते-आते स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को मानों भुला दिया गया। इसके साथ अगर विशेष कृषि-रेल नेटवर्क वाले फ्रेट-गलियारे का सुनहरा सपना हकीकत में तब्दील हुआ नहीं। साथ में अगर 2015 के बजट में जल क्रांति लाने की बात की गई, वह भी पूर्ण रूप से धरातल पर दिखी नहीं। और ज़िक्र तो पहले बजट वर्ष में 100 स्मार्ट शहर बनाने औऱ महंगाई कम करने की भी हुई थी, जो चरितार्थ हुआ नहीं, औऱ रोजगार उत्पन्न हुए नहीं। फ़िर सरकारें अवाम के प्रति कितनी वफादार हैं, उसका पता चलता है। साथ में यह भी कि चुनावी घोषणा-पत्र की तरह शायद बजट भी सिर्फ़ चुनावी जुमलों की राजनीति साबित हो रहा है, क्योंकि पिछले बजट की कितनी योजनाएं सकल रूप से धरातल पर आई उसका ज़िक्र इस बजट में हुआ नहीं।

तो हर वर्ष की तरह बजट में भी कई सारे बातें की गई। जिसमें 2022 तक जब देश की आज़ादी के 75 वर्ष होंगे, तब किसानों की आय दुगनी करने की बात की है। साथ में किसानों की फ़सल का डेढ़ गुना दाम दिलाने की बात भी की है। यह भी उस दौर में जब कृषि विकास दर पिछली सरकार से दो फ़ीसद कम पर है। दूसरी बड़ी बात बजट की यह है, कि सरकार ने नोटबन्दी के बाद इस बजट से यह साबित करने की कोशिश की है, कि वह ग़रीबो की सरकार है। जिसके लिए बजट में ग़रीब की दुःखती रग स्वास्थ्य को छूने का कार्य किया गया। जिसके अंतर्गत दस करोड़ परिवारों यानि 50 करोड़ लोगों को पांच-पांच लाख का स्वास्थ्य बीमा देने की घोषणा बजट में की गई है। इन दो बड़ी योजनाओं को इतर रखकर बजट पर मंथन हो, तो सरकार किसी बड़े आर्थिक सुधार की दिशा में आगे बढ़ती नहीं दिख रही। सरकार रोजगार और महंगाई के मुद्दे पर घिर रहीं है, उससे निपटने का कोई सलीका नहीं निकाला जा सका है। जिस कारण हवा हवाई बातों से बजट की विश्वसनीयता संदिग्ध है । मसलन अब हवाई चप्पल वाले व्यक्ति के लिए हवाई यात्रा की बात की जा रही है । लेकिन, भारत जैसे देश में हर व्यक्ति को न्यूनतम दो रोटी उपलब्ध हो , इसकी गारंटी अभी तक नहीं दी जा सकी है । देश मे अपराध लगातार बढ़ रहा है । हमारी सुरक्षा व्यवस्था पर बजट में अतिरिक्त कितनी धनराशि खर्च की जानी है, इसका कोई जिक्र नहीं है । और भी तमाम मूलभूत विषय है जिनसे देश लगातार जूझ रहा है, और वे अखबारों की सुर्खियों में होते हैं । उन पर कोई बात ही नहीं की गई है । ऐसे में सिर्फ डेटा विश्लेषण से कोई बजट अच्छा कैसे हो सकता है ।

फ़िर दो बड़ी घोषणाएं जो बजट में हुई हैं, वह भी आने वाले दिनों में दम तोड़ सकती हैं, क्योंकि सरकारें किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य देने का दम्भ तो भरती हैं, लेकिन नीतियों के सफ़ल क्रियान्वयन न होने से किसान बेहाल ही रहता है। भले ही बजट में खेतिहर किसानों की पीड़ा को ध्यान रखते हुए उत्पादन की लागत से कम से कम पचास प्रतिशत अधिक अर्थात लागत का डेढ़ गुना मूल्य उपज का देने की बात की है। फ़िर ऐसे में अगर नीतियां अच्छी रहीं । तभी कहीं सरकार का यह फैसला किसानों के लिए बड़ी सौगात साबित हो सकता है। वरना देश में सैकड़ों सिंचाई परियोजनाएँ चल रहीं है। इसके बावजूद अगर किसानों के खेतों तक पानी मयस्सर नहीं हो पाता, साथ में खाद-बीज और अन्य कृषि उपकरण सस्ते दर पर उपलब्ध नहीं होते, तो ऐसे में तो कृषि उत्पादन की लागत ओर बढ़ जाती है। इससे भी किसानों की दुःस्वरियाँ बढ़ती है। साथ में उपज का उचित मूल्य न मिलने का सबसे बड़ा कारण किसानों को बाजार न मिलना भी है । आज अगर देश में किसानी करने वाले कृषक में से 86% छोटे और लघु सीमांत श्रेणी के किसान हैं। जो अपने उत्पाद को ऑनलाइन अथवा बड़ी मंडी में बेचने की स्थिति में नहीं होते। जिस कारण उन्हें बिचौलियों का शिकार होना पड़ता है, और उपज का सही दाम किसानों को नहीं मिल पाता। तो इसके लिए सरकार ने किसानों की परेशानियों को समझते हुए मौजूदा 22000 हज़ार ग्रामीण हाठों को ग्रामीण कृषि बाज़ार में बदलने का निर्णय लिया है। जिसको सरकार ने ई–नैम से भी जोड़ने की दिशा में काम करने को तैयार है। अगर ऐसा हुआ औऱ क्षेत्रीय स्तर पर नीतियों का सफ़ल संचालन किया जा सका, तो किसानों को उपज का सही मूल्य मिल सकता है, लेकिन बिना नियत औऱ नियमन के कुछ भी संभव नहीं। तो सरकार को अभी से संसाधनों को इकट्ठा करने की दिशा में बढ़ना होगा, क्योंकि अभी तो सरकार राजकोषीय संतुलन बनाए रखने के लिए वर्तमान में तरस रही है। साथ में सरकार राजनीतिक रूप से लक्षित समूह को ध्यान में रखने के चक्कर में अगर मध्यम वर्ग को भूल गई। तो वह उसे आने वाले समय में राजनीतिक नुकसान भी पहुँचा सकता है, क्योंकि भाजपा मध्य वर्ग की पार्टी मानी जाती है। जिस पर बजट में ध्यान दिया नहीं गया। तो यह बात उसके लिए चिंता की लक़ीर आने वाले समय में साबित हो सकती है।

महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896