कविता

होली पर एक रचना

इन्द्र्धनुष के रंगों जैसा, मुझको रंग दो,
होली के रंगों को, सतरंगी कर दो।
राग-द्वेष, बैर-भाव, नफ़रत जड़ से मिटाकर,
बासंती अवसर को, खुशियों से भर दो।
हिन्दू-मुस्लिम की बात नहीं करता यारों,
मानवता जन-जन के जीवन में भर दो।
भूख-गरीबी, आतंकवाद की,आज जलाकर होली,
शिक्षा के रंगों से, जीवन रोशन कर दो।
धर्म-जाति और क्षेत्रवाद की, खेल रहे जो होली,
उन देश के गद्दारों को, होली में स्वाहा कर दो।
डॉ अ कीर्तिवर्धन