बाल कविताशिशुगीत

व्यंजन बोल उठे

‘क’ कलम से लिखना सीखो,
‘क’ कमल से हंसना,
‘क’ कलश पानी है भरता,
‘क’ कबूतर उड़ता रहता.

‘ख’ खरगोश है कोमल-कोमल,
‘ख’ खरबूजा गोल-मटोल,
‘ख’ खरल में पिसती बूटी,
‘ख’ खटिया है देखो टूटी.

‘ग’ गमले में लाल गुलाब,
‘ग’ गधे को देखो जनाब,
‘ग’ गैया है सीधी-सादी,
‘ग’ गुड़िया है भुट्टा खाती.

‘घ’ घर को है राज बनाता,
‘घ’ घड़ी से समय पूछता,
‘घ’ घड़ियाल है बड़ा भयानक,
‘घ’ घेरा है बाग बचाता.

‘च’ चम्मच है छोटा-छोटा,
‘च’ से चरखा कभी न सोता,
‘च’ से चमचम मीठी-मीठी,
‘च’ चमकता सूरज प्यारा.

‘छ’ छतरी वर्षा से भीगे,
‘छ’ छलिया जो सबको लूटे
‘छ’ छाजन है साफ बनाता
‘छ’ छप्पर रक्षा करता.

(रुचिपूर्वक जन-ज्ञान के लिए काव्यमय गीत)

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “व्यंजन बोल उठे

  • लीला तिवानी

    सरल भाषा में रुचिपूर्वक व्यंजन-ज्ञान के लिए यह काव्यमय गीत छात्रों में बहुत लोकप्रिय हुआ.

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