बाल कविताशिशुगीत

बुरे कर्म का बुरा नतीजा

आज दशहरा फिर से आया,
खुशियां-ही-खुशियां ले आया,
सच की सदा विजय होती है,
यह हमको बतलाने आया.

आज दुकानें खूब सजेंगी,
रंग-बिरंगी भली लगेंगी,
आज पटाखे खूब जलेंगे,
बच्चों की तो धूम मचेगी.

मेला आज लगेगा भारी,
हमने देखी है तैयारी,
आज मिलेंगे खूब गुब्बारे,
चाट-पकौड़ी की है बारी.

आज राम जी आएंगे,
सबको दरश दिखाएंगे,
रावण को फिर मारेंगे,
सीता जी को छुड़ाएंगे.

बुरे कर्म जो करता वह ही,
रावण दुष्ट कहाता है,
वरना रावण भारी पंडित,
पर राक्षस कहलाता है.

इस प्रकार यह पर्व दशहरा,
सच की जीत दिखाता है,
बुरे कर्म का बुरा नतीजा,
यह हमको सिखलाता है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “बुरे कर्म का बुरा नतीजा

  • लीला तिवानी

    इस संसार में कोई मनुष्य स्वभावतः किसी के लिए उदार, प्रिय या दुष्ट नहीं होता. अपने कर्म ही मनुष्य को संसार में गौरव अथवा पतन की ओर ले जाते है. अच्छे कर्म अच्छे व्यक्तित्व का दर्पण हैं.

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