गीतिका/ग़ज़ल

सोया हूँ गम को अश्कों में बहा के,,,

निखर ना जाये चाँद चांदनी में नहा के
सोया हूँ इसलिए गम अश्कों में बहा के

कोई तो आसरा दे दो दो गज का हमे
आया सड़को में खुद का मकां ढहा के

हकीकत ये मुकम्मल ना हो शायद उन्हें
तो कोई और जुर्म ना करना बेवफा पे

वो रमती है ह्रदय द्वार में उमा रमा सी
दिखा देना तुम चिलमन जरा हटा के

निखर ना जाय चाँद चांदनी में नहा के
सोया हूँ इसलिए गम अश्को में बहा के

दर्द की खरीददारी का शौक क्या पाला
खिलखिलाया हूँ तन मन को जला के

खैर लुट जाने दो आशियाँ मेरा अपना
हल्का ना करो ये सौदा तूम मेरा बता के

रास्ते मे हूँ तो मंजिल मिल ही जाएगी
दुस्वार ना करो सफर ये सुहाना हसाँ के

भीगने दो रुकसारो को इस गर्म पानी से
हथेलियां ना गलाओ आंखों से लगा के

निखर ना जाए चाँद चांदनी में नहा के
सोया हूँ इसलिए गम अश्कों में बहा के

संदीप चतुर्वेदी “संघर्ष”

संदीप चतुर्वेदी "संघर्ष"

s/o श्री हरकिशोर चतुर्वेदी निवास -- मूसानगर अतर्रा - बांदा ( उत्तर प्रदेश ) कार्य -- एक प्राइवेट स्कूल संचालक ( s s कान्वेंट स्कूल ) विशेष -- आकाशवाणी छतरपुर में काव्य पाठ मो. 75665 01631