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‘हिंदी बचाओ मंच’ का संघर्ष निर्णायक मोड़ पर

23 फरवरी 2018 की शाम को इंडिया हैबिटेट सेंटर, नई दिल्ली का गुलमोहर सभागार ‘हिंदी बचाओ मंच’ के विगत एक वर्ष के संघर्ष का साक्षी बना । ‘प्रवासी संसार’ की ओर से यह कार्यक्रम “शिक्षा के माध्यम की भाषा” विषय पर परिचर्चा और “हिंदी बचाओ मंच का एक साल” शीर्षक पुस्तक के लोकार्पण हेतु आयोजित था ।

इस अवसर पर ‘हिंदी बचाओ मंच’ के संयोजक डॉ. अमरनाथ, प्रख्यात पत्रकार राहुल देव, पूर्व कुलपति व प्रतिष्ठित लेखक विभूति नारायण राय, प्रसिद्ध भाषा चिन्तक व रेलवे बोर्ड के पूर्व संयुक्त सचिव प्रेमपाल शर्मा, मुंबई विश्वविद्यालय के प्रो. करुणाशंकर उपाध्याय, उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद के पूर्व प्रोफेसर एम. बेंकटेश्वर, भाषाचिन्तक नारायण कुमार, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. सुधीर कुमार सिंह, ‘संवाद विमर्श’ के संपादक डॉ. विश्रान्त वशिष्ठ, अवधी के प्रख्यात लेखक जगदीश पियूष, ‘अवध ज्योति’ के संपादक राम बहादुर मिश्र, लेखक ओम विकास, पत्रकार पवन विजय और पुस्तक की संपादक शची मिश्रा आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। मंच का कुशल संचालन ‘प्रवासी संसार’ के सम्पादक राकेश पांडेय एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रो.करुणाशंकर उपाध्याय ने किया ।

कार्यक्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू एवं जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय के शिक्षक व शोध छात्रों ने बड़ी संख्या में भाग लिया । आयोजन की बड़ी सफलता इसमें उपस्थित उन श्रोताओं के रूप में भी देखी जा सकती है जो उत्तर, मध्य एवं दक्षिण भारत से आये थे । ऐसे श्रोताओं में से भी कई लोगों ने मंच से अपने विचार व्यक्त किए । भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा तथा भारत की एकता और अखंडता के लिए चिंतित एवं संघर्षरत तथा जागरूक बुध्दिजीवियों की यहां उपस्थिति से हिंदी को नया संबल मिला है ।

गौरतलब है कि लोकार्पित पुस्तक का सम्पादन शची मिश्रा ने किया है । यह पुस्तक ‘हिंदी बचाओ मंच’ के एक वर्ष के संघर्ष का जीवंत दस्तावेज है, जिसमें हिंदी की दशा-दिशा को लेकर विचारोत्तेजक लेख संकलित हैं । 592 पृष्ठों यह पुस्तक ‘हिन्दी बचाओ मंच का एक साल’, ‘चिन्दी चिन्दी होती हिन्दी, हम क्या करें’, ‘पत्रों के झरोखे से’, ‘विरासत’, ‘मंच के हम सफर’, ‘संयोजक की कलम से’, ‘जातीय चेतना जागरण अभियान’, ‘सोशल मीडिया की बहसें’, ‘संसद के गलियारे से’, ‘मैथिली का मसला’ तथा ‘अभी लड़ाई जारी है’ नामक कुल ग्यारह अध्यायों में विभक्त है। इसके आरंभिक दो अध्यायों में ‘हिन्दी बचाओ मंच’ के संयोजक डॉ. अमरनाथ के लेख हैं। ‘पत्रों के झरोखे से’ नामक अध्याय में संगठन द्वारा प्रधान मंत्री, गृह मंत्री, कुछ प्रदेशों के मुख्य मंत्रियों, राष्ट्रपति व राज्यपाल तथा प्रतिपक्ष के नेताओं व विशिष्ट सांसदों को समय समय पर भेजे गए पत्रों से संबंधित सूचनाएं हैं। पुस्तक का चौथा व पाँचवाँ अध्याय बहुत उपयोगी हैं। चौथे अध्याय में संविधान की आठवीं अनुसूची और हिन्दी की बोलियों के विवाद से संबंधित हजारी प्रसाद द्विवेदी, वासुदेव शरण अग्रवाल, रामधारी सिंह दिनकर, विद्यानिवास मिश्र, रामविलास शर्मा, प्रभाकर श्रोत्रिय आदि के लेख हैं तो पाँचवें अध्याय में विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, विश्वनाथ सचदेव, कमलकिशोर गोयनका, काशीनाथ सिंह, सूर्यप्रसाद दीक्षित, प्रभु जोशी, कैलाशचंद्र पंत, जी. गोपीनाथन, महावीर सरन जैन, कृष्णकुमार गोस्वामी, परमानंद पांचाल, पंकज गौतम, विजयकिशोर मानव, सुधीश पचौरी, रविभूषण, गिरीश्वर मिश्र, बुद्धिनाथ मिश्र, यज्ञ शर्मा, विभूतिनारायण राय, निर्मलकुमार पाटौदी, नंदकिशोर पाण्डेय, प्रेमपाल शर्मा, श्रीभगवान सिंह, श्यामरुद्र पाठक, संजीव, एम.एल.गुप्ता आदित्य, करुणाशंकर उपाध्याय, रंजना अरगड़े, राकेश पाण्डेय, देवराज, शशिकला त्रिपाठी, अनंत विजय, संजीव कुमार दुबे, पुनर्वसु जोशी, शची मिश्र, बीरेन्द्र सिंह, ऋषिकेश राय और नरेश पाण्डेय ‘चकोर’ के आलेख संकलित हैं। इन लेखों को पढ़ लेने के बाद इस विषय से संबंधित कोई भी प्रश्न अविचारित नहीं रह जाता।

छठें अध्याय में संयोजक डॉ. अमरनाथ द्वारा लिखित और इस अवधि में प्रकाशित कुछ चयनित लेख व साक्षात्कार संकलित हैं। इनमें विषय से संबंधित लगभग सभी मुद्दों पर बेबाक टिप्पणियां की गई हैं।

डॉ. अमरनाथ ने विगत एक वर्ष में देश के विभिन्न हिस्से की यात्राएं की, पर्चे बांटे, व्याख्यान दिए और प्रेस कान्फ्रेंस आदि किए। ‘जातीय चेतना जागरण अभियान’ शीर्षक अध्याय इसका प्रमाणिक दस्तावेज है। यहाँ समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों की कुछ छाय-प्रतियां भी हैं। ‘सोशल मीडिया की बहसें’ शीर्षक अध्याय में सोशल मीडिया, खास तौर पर फेसबुक पर हुई बहसों का रोचक विवरण है। इसमें देश के अधिकाँश प्रतिष्ठित लेखकों और संस्कृति-कर्मियों नें हिस्सा लिया है।

हमारी संसद में प्रभुनाथ सिंह, रघुबंश प्रसाद सिंह, अली अनवर अंसारी, संजय निरूपम, जगदम्बिका पाल, शत्रुघ्न सिन्हा, मनोज तिवारी, अर्जुनराम मेघवाल आदि ने समय समय पर भोजपुरी और राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की है। ‘संसद के गलियारे से’ शीर्षक अध्याय में इस विषय को लेकर संसद में हुई बहसों का लेखा जोखा तो है ही, उनपर ‘हिन्दी बचाओ मंच’ की प्रतिक्रियाएं भी दी गई हैं। इसे देखकर लगता है कि संसद में बहस करने वाले और हमारे लिए कानून बनाने वाले हमारे रहनुमा विषय के बारे में कितना कम जानते हैं। ‘मैथिली का मसला’ शीर्षक अध्याय में संविधान की आठवी अनुसूची में शामिल की गई मैथिली के मुद्दे पर कुछ विवादास्पद प्रश्न उठाए गए हैं।

ग्रंथ के अंतिम अध्याय में संयोजक द्वारा प्रधान मंत्री को लिखा गया पत्र और उसपर कुछ चयनित प्रतिक्रियाएं संकलित की गई हैं। इससे पता चलता है कि ‘हिन्दी बचाओ मंच’ का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी के वर्चस्व से लड़ना है। संगठन का विश्वास है कि अंग्रेजी के वर्चस्व से लड़ने में हिदी ही सक्षम हो सकती है और हिन्दी की शक्ति उसकी बोलियों में निहित है। इसलिए हिन्दी परिवार को टूटने वे बचाना संगठन का मुख्य लक्ष्य है।

पुस्तक में कुछ रंगीन चित्र भी हैं जिनसे पुस्तक की रोचकता तो बढ़ी ही है, प्रामाणिकता भी पुष्ट हुई है। निस्संदेह भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा के लिए चिन्तित हर जागरूक व्यक्ति के लिए यह पुस्तक अनिवार्य रूप से पठनीय है। पुस्तक पेपर बैक और सजिल्द दोनो रूपों में उपलब्ध है। पेपर बैक का मूल्य 500/ और सजिल्द का मूल्य 900/ रूपए है जो सर्वथा उचित है। इसे आनंद प्रकाशन, कोलकाता ने प्रकाशित किया है।

अभिषेक शुक्ल