कविता

दुहराती है जिंदगी

दुहराती है जिंदगी
बीते पलों को एक बार फिर से
हां, सोचा न था..

कि तुमसे बिछड़ने के बाद
मिलेंगे.. कभी किसी मोड़ पर
होगा.. सामना तुम्हारा एक बार फिर से।

शायद, जुदाई के उस दुखद क्षण ही में
नियति ने तय कर दिया था
एक बार फिर से मिलना हमारा।

आखिर, प्रकृति भी
तो रोती है शायद
दो दिलों के टूटने पर।

कहते हैं पूरी कायनात
जुट जाती है
सच्चे प्रेमी को मिलाने में।

पर, यह क्या …..
शायद सृष्टि भी बंधी है
कुछ नियमों के मजबूरियों से।

तभी तो…
किसी के किस्मत के विरुद्ध
साथ नहीं देती आगे बढ़कर।

अपनी मजबूरी और
नाराजगी का तांडव
जतलाती अवश्य है।

ये बिन मौसम अंधड़, तूफान, बारिश
यूँ ही नहीं बरसते….
होता है छिपा इनमें

किसी के बिछुड़न की तड़प…
आंसुओं की अविरल बहती धार
प्रेमी युगल की जुदाई का करुण क्रंदन…।

हां, दुहराती है जिंदगी
बीते पलों को एक बार फिर से….।

*बबली सिन्हा

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