कविता

समय देकर तो देखो

समय देकर तो देखो
शायद सब कुछ ठीक हो जाए
पुराने-कडवे रिश्तों में
शायद थोड़ी-सी मिठास भर आए
दुश्मनी की मशाल
शायद थोड़ी कम हो जाए
भटके हुए को उसका मार्ग मिल जाए
समय देकर तो देखो
शायद सब कुछ ठीक हो जाए
घर में फैली सीलन का
कोई ईलाज मिल जाए
दो पीढियों के बीच का छेद
शायद पुरी तरह भर जाए
जिन्होंने किया छल तुमसे
शायद उन्हें अपनी गलती मालूम हो जाए
तुमनें भी अगर की होगी गलतियां
तो शायद तुम्हें उनका पछतावा हो जाए
और तुम्हारे जीवन आनंद से भर जाए
समय देकर तो देखो
शायद सब कुछ ठीक हो जाए

– श्रीयांश गुप्ता

श्रीयांश गुप्ता

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