कविता

गठबंधन

अनुबंधों के संबंधों ने ,
गठबंधन फिर बना दिया
व्यालों के परिवारों ने,
चंदन को भी विष पिला दिया।

देख-देखकर इक-दूजे को,
जो अंगार उगलते थे
थे फनवाले,पर गिरगिट की,
तरह रंग बदलते थे
आस्तीन में रहनवालों ने,
बाँबी को तक भुला दिया
अनुबंधों के संबंधों ने ,
गठबंधन फिर बना दिया।1।

ये जब चाहें तब डस लें,
मर्ज़ी इनकी मनमानी है,
पोता गर डस ले दादा को,
माँग सके ना पानी है
तक्षक की वंशों ने आखिर, कलयुग को भी रुला दिया
अनुबंधों के संबंधों ने,
गठबंधन फिर बना दिया।2।

शरद सुनेरी