लघुकथा

बेबस

मास्टर सीताराम अपने घर में बैठे टीवी पर समाचार देख रहे थे कि पड़ोस से आ रही तेज शोरगुल की आवाज सुनकर बाहर निकले । पड़ोसी रमेश के घर के घर के सामने पुलिस की गाड़ी खड़ी थी व कुछ अन्य आदमी भी थे । पास पड़ोस के तमाशबीनों की भीड़ भी कुछ दूरी से तमाशा देख रही थी और कुछ समझने का प्रयास कर रही थी । किसी ने उन्हें बताया ‘ रमेश ने बैंक से पांच लाख का लोन लिया था । व्यापार में आई मंदी की वजह से पिछले कई महीनों से किश्त की रकम नहीं भर पा रहा था । आज बैंक के अधिकारी उसके घर को सील करने की प्रक्रिया पूरी करने आये थे । ‘
 इस कानूनी प्रक्रिया के सामने अपने आपको बेबस पा कर सीताराम जी बुझे मन से वापस घर में घुसे । घर में घुसते ही उनकी नजर टी वी पर चल रही ब्रेकिंग न्यूज़ पर पड़ी ‘ पीएनबी बैंक में 11300 करोड़ का घोटाला ……बैंकों के पैसे लेकर नीरव मोदी फरार ….! ‘

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “बेबस

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, लेखक कई बार मदद करने की बात चाहकर भी पूरी न कर पाने पर आदमी अपने को बेबस समझने लगता है. अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

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