कविता

“रोला छंद”

कृपा करो हे नाथ, साथ मानव मिल जाए

सरयू तट रघुनाथ, अयोध्या महल बनाए

सीता जी का साथ, पवनसुत जहाँ विराजें

धन्य ज्ञान वह भूमि, जन्म श्री राम सुराजे॥

लंका जीते राम, राक्षसी कुल को तारे

एक वाटिका नाम, अशोक सिया पद न्यारे

हनुमान लिए खोज, मनोज निशाचर मारे

रिक्त न हो संसार, गंग सुरसरि महि धारे॥

अभी वक्त है मान, सम्मान प्रभु का कर ले

लगा न घट अनुमान, अमिय घड़ा जिया भर ले

बोली मत विष घोल, छद्म की बंद किवाड़ी

कहाँ हुआ कल्याण, रावण पन तक अनाड़ी॥

मंदिर मह श्रीराम, मस्जिदी अल्ला ताला

दोनों ईश्वर नाम, पंथ पुर्ववत निराला

यह कैसी है चाल, लड़ रहे भोले भाला

किसका है खलिहान, लगाया घर पर ताला।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ