लघुकथा

मंज़िल

उस दिन मैंने ताई जी से पूछा था- ”ताई जी मैं लीक से हटकर कुछ करना चाहता हूं. आप मुझे कोई नया कोर्स सुझाइए न! जिससे मेरी आय भी अच्छी हो और मैं देश के विकास में सहायक भी हो सकूं.” ताई जी ने मुझे एक किस्सा सुनाया.

”बचपन से ही निराला को लीक से हटकर कुछ करने का शौक था. इसी शौक के चलते निराला ने पहले वेटरनेरी की डिग्री हासिल की. अब वे डॉक्टर बन गए थे. डॉक्टर बनने के बाद भी कुछ नया जानने और करने की उनकी ललक जागृत रही. इसी दौरान उन्हें सरकार द्वारा चलाए जा रहे एग्री क्लिनिक एग्री बिजनेस सेंटर के बारे में पता चला. इस सेंटर से उन्होंने दो महीने का कोर्स किया और उनकी जिंदगी बदल गई. आज गांव-गांव जाकर वे लोगों को खेती के अलावा कमाई के अन्य विकल्पों जैसे बकरी पालन, मछली पालन और डक फार्मिंग के बारे में जानकारी देकर देश के विकास में सहायक बन रहे हैं. हर महीने उनकी 1.25 लाख रु. की कमाई भी हो रही है.”

मुझे अपनी मंज़िल मिल गई थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “मंज़िल

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , लघु कथा बहुत अछि लगी .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    दो महीने के एक कोर्स ने बिहार के नालंदा जिले के निवासी डॉ चंद्रकांत कुमार निराला की जिंदगी बदल दी. अब वे हर साल 15 लाख कमाने के साथ देश के विकास में भी सहायक बन रहे हैं. प्रेरक किस्से से मन में नए विचार उपज सकते हैं.

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