लघुकथा

 “तमाचा”

एक दिन मैं हाथों में तख्ती लिए हर उम्र के लोगों के पंक्ति के सामने से गुजर रही थी। युवाओं की संख्या ज्यादा थी, “तीन तलाक हमारा हक़ है बिल वापस लो” तख्ती पर लिखे थे, तुम्हारी कौम क्यों नहीं चाहती कि औरतें सुखी हो?”
“उन्हें दुख क्या है?”
“तुम युवा हो हज के लिए जा रहे हो क्या झटके से तलाक देने को सही ठहरा रहे हो?”
“व्हाट्सएप्प पर नहीं देना चाहिए!”असहनीय मुस्कान थी इरफान के चेहरे पर, इरफान मेरे घर बिजली बिल देने आया था बातों के क्रम में वो बताया कि अपनी माँ को लेकर हज कराने जा रहा है क्यों कि औरत हज करने पति बेटा या किसी पुरुष के साथ जाएगी तभी फलित है…
“क्रोध में दिया तलाक सही है?”
“…”
“तुम्हारी सोच पर अफसोस हुआ… समय बदल रहा है… ऐसा ना हो कि स्त्रियाँ शादी से ही इंकार करने लगे।”
“मछली हर धर्म की फंस जाती है आँटी!”

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “ “तमाचा”

  • विजय कुमार सिंघल

    लघुकथा स्पष्ट नहीं है. साफ़ साफ़ लिखना चाहिए कि कौन सा संवाद किसका है और किससे कहा गया है.

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      जी
      एडिट करने की कोशिश करती हूँ
      आभार आपका

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