लघुकथा

घायल खिलोंनें

 

रत्ना अस्पताल के बरामदे में बैठे बाहर दूसरे बच्चों के साथ बगीचे में खेलती बेटी को देख फूली नहीं समा रही थी, बेटी वर्षा का आपरेशन सफल रहा ।बगीचे की तरफ देखते देखते उसकी आँखों के आगे से एक एक घटनाक्रम चल चित्र की भाँति घूम गया, जब वो घर में ब्याह कर आई थी, बिन माँ के घर की जो हालत होती है वो किसी से भी छुपी नहीं थी, ऊपर से बडी होती वर्षा का सभी काम रत्ना को खुद करना होता था, अस्त व्यस्त घर को सम्भालने में रत्ना दिन रात एक कर लगी थी कि अचानक उसकी नजर वर्षा के टूटे फूटे खिलोनों के बक्से पर पडी तो उसकी सफाई में लग गई।
“मम्मी आप मेरे सभी खिलोने फेंक दोगी क्या ?”
” वर्षा देखो तुम्हारी गुडिया और बहुत से खिलोने पुराने और जगह जगह से टूट गए हैं तो हम इन सभी की जगह नए खिलोने लायेंगे।” रत्ना बोली
“मम्मी आप भी तो मुझे गुडिया बुलाती हो और मेरा एक पैर भी खराब है, तो क्या आप मुझे भी बदल दूसरी वर्षा लाओगे?”
” बेटा मैं तुम्हारी दूसरी माँ जरूर हूँ पर मेरे लिए तुम सिर्फ तुम प्यारी गुडिया रहोगी और हम तुम्हारा. ….।”
अचानक वर्षा ने झकझोरा तो रत्ना खुशी के आंसू लिए बोली, ” कुछ घायल खिलोनों का इलाज धरती के भगवान ही करते हैं।”

संयोगिता शर्मा
सेंट लुईस ( यू एस ए )

संयोगिता शर्मा

जन्म स्थान- अलीगढ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा- राजस्थान में(हिन्दी साहित्य में एम .ए) वर्तमान में इलाहाबाद में निवास रूचि- नये और पुराने गाने सुनना, साहित्यिक कथाएं पढना और साहित्यिक शहर इलाहाबाद में रहते हुए लेखन की शुरुआत करना।