राजनीति

चीन में ऐतिहासिक बदलाव का अहम महत्व : बढेंगी वैश्विक चुनौतियां

भारत के प्रमुख पड़ोसी देश व पूरी दुनिया को सीधी चुनौती दे रहे चीन में अहम बदलाव हुआ है। चीन में एकदलीय राजनीति में सबसे बड़ा बदलाव हुआ है। वहां की संसद ने एक ऐतिहासिक संविधान संशोधन को मंजूरी दी है, जिसके अनुसार राष्ट्रपति शी चिन फिंग दो कार्यकाल पूरा करने के बाद भी आजीवन सत्ता में बने रहेंगे। 64 वर्षीय शी चिन फिंग इसी महीने अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करने जा रहे हैं। वे सत्तारूढ़ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) और सेना प्रमुख हैं। वह पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष माओत्सेतुंग के बाद ऐसे पहले चीनी नेता हैं, जो आजीवन सत्ता में बने रह सकते हैं। चीनी संसद ने संविधान में ऐतिहासिक संशोधन करके देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए अधिकतम दो कार्यकाल की अनिवार्यता की दशकों पुरानी परम्परा को समाप्त कर दिया है।
एनपीसी में प्रस्ताव के पक्ष में 2958 वोट पड़े, जबकि विरोध में दो वोट पड़े और तीन सांसद अनुपस्थित रहे। विरोध में भी दो मत सरकार की परोक्ष अनुमति से ही पड़े ताकि विविधता की झलक दिखाई जा सके। यह चीन का नया तानाशाही प्रयोग है। मतदान के समय मतपत्रों का उपयोग किया गया, जबकि हाथ उठाकर सहमति जताने या इलेक्ट्रानिक वोटिंग का भी विकल्प था। अब चीन मेें इस संशोधन के बाद एक दलीय शासन प्रणाली से एक नेता के शासन की ओर बढ़ने का रास्ता साफ हो गया है। चीन में 1949 के बाद सबसे बड़ा राजनैतिक बदलाव हुआ है। राजनैतिक विश्लेषकों का मत है कि अब चीन के रूप में एक नया बेहद खतरनाक तानाशाह राष्ट्र का जन्म हुआ है।
अंतराष्ट्रीय विश्लेषकों का अनुमान है कि बदला हुआ चीन तथा विस्तारवादी चीन अब एक नये तानाशाह के रूप में और अधिक खतरनाक तथा आक्रामक तेवरों के साथ दुनिया के सामने आ़ सकता है। विस्तारवादी चीन का मुकाबला भारत और अमेरिका के साथ है। आज फेसबुक और सोशल मीडिया के युग में चीन के नये तानाशाहों का विरोध भी शुरू हो गया है। अमेरिका ब्रिटेन आदि अन्य देशों मे रह रहे चीन के लोकतंत्र समर्थक नागरिेकों ने विरोध शुरू कर दिया है, जिनकी आवाज को वहां की सरकार ने बंद करने का काम भी शुरू कर दिया है। चीनी राष्ट्रपति शी चिन फिंग का यह कार्यकाल कैसा होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन जब-जब चीन में ऐसे प्रयास हुए हैं, तब-तब ड्रैगन ने अपनी एक अलग ताकत ही दिखायी है।
माना जा रहा है कि शी के आजीवन कार्यकाल के दौरान भारत सहित दुनिया के प्रमुख देशों के साथ संबंधों में 360 डिग्री का बडत्रा बदलाव आ सकता है। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद एक बड़ा गंभीर मसला है। हाल ही में डोकलाम विवाद के दौरान 73 दिनों की तनातनी ने काफी गम्भीर मोड़ ले लिया था, यहां तक कि युद्ध की नौबत आ गयी थी। चीन अरूणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोकता रहता है। जब भी भारत के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति व अन्य मंत्रियों आदि के दौरे वहां पर होते हैं, तो चीन की आंखें टेड़ी हो जाती हैं।
आतंकी मसूद अजहर के मामले में चीन का रवैया नहीं बदल रहा है। चीन और पाकिस्तान की दोस्ती भारत के लिए लगातार सिरदर्द बनी हुयी है। चीन खुलकर पाकिस्तान की मदद कर रहा है। 2014 और 2017 के बीच भारत और चीन के बीच काफी तनाव रहा। चीन को यह अच्छी तरह से पता है कि एशिया में चीन के प्रभुत्व को चुनौती केवल भारत से ही मिलती है। यही कारण है कि चीन भारत के प्रति कुछ अधिक ही आक्रामक रहता है। अब जब सत्ता पर शी का आजीवन नियंत्रण हो गया है तब भारत के लिए और अधिक समस्या उत्पन्न हो सकती है।
शी का कार्यकाल बढ़ाने से पूर्व ही चीन ने अपने रक्षा बजट में बेतहाशा वृद्धि की है। चीन ने अपने रक्षा बजट में 8.1 फीसद की वृद्धि के साथ इस वर्ष के लिए 175 अरब डालर के रक्षा बजट की घोषणा की है। अमेरिका के बाद चीन का रक्षा खर्च दुनिया में सबसे अधिक है। चीनी राष्ट्रपति का कहना है कि सेना को अत्याधुनिक बनाने पर फोकस को देखते हुए रक्षा बजट बढ़ाया गया। चीन का ध्यान स्टीत्थ लड़ाकू विमान, विमानवाहक पोत और सेटेलाइट रोधी मिसाइल समेत कई नई सैन्य क्षमताएं विकसित करने पर है। चीन सरकार का कहना है कि अब हम अपनी राष्ट्रीय संप्रुभता, सुरक्षा और विकास हितों को सुरक्षित करेंगे। चीन की सरकारी मीडिया ने रक्षा बजट को उचित बताया है, जिसके कारण भारत और अमेरिका के साथ चीन की तनातनी काफी बढ़ सकती है।
चीन भारत के पड़ोसी देशों में भी अपना दबदबा बढ़ा रहा है। श्रीलंका में चीन की गतिविधियां बढ़ी हैं। नेपाल में तो चीनी समर्थक सत्ता ही आ गयी है। नेपाल में ओली के पीएम बनने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने वहां की यात्रा की। नेपाली पीएम ओली चीन समर्थक माने जाते हैं। अब वहां पर चीन व पाकिस्तान भारत विरोधी नयी गतिविधियों को बेहिचक चला सकते हैं। चीन बांग्लादेश आदि को भी बरगलाने की साजिश रचता रहा है। अभी मलेशिया में जो संकट खड़ा हुआ और भारत चाहकर भी वहां पर अपना हस्तक्षेप नहीं कर पा रहा, उसके पीछे चीन की ही चाल है। ताइवान को लेकर भी चीन का रवैया काफी आक्रामक रहा है। अतः शी के नये कार्यकाल के दौरान यदि किसी देश को सबसे अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है तो वह है भारत ।
लेकिन यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि भारतीय संसद को जिन बेहद गंभीर सुरक्षा विषयों को लेकर सदन में जोरदार चर्चा होनी चाहिए थी वहीं सारा समय केवल हंगामें की भेंट ही चढ़ जाता है। उधर सेना ने सैन्य आधुनिकीकरण के लिए कम बजट आवंटन पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा है कि चीन और पाकिस्तान से दो मोर्चों पर जंग के खतरों को देखते हुए सेना के आधुनिकीकरण को और गति देने की जरूरत है। सेना का 68 फीसदी साजोसमान संग्रहालय में विरासत के रूप में रखने लायक हो चुका है।
उपप्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल शरत चंद्र ने स्थायी समिति के समक्ष यह सनसनीखेज बयान दिया है। उन्होंने कहा कि बजट की कमी के चलते बजट की कमी के चलते कई परियोजनाएं बंद करनी पड़ सकती हैं। भजपा नेता मेजर जनरल रिटायर्ड बी सी खंडूरी की अध्यक्षता वाली रक्षा संबंधी स्थायी संसदीय समिति की रिपोर्ट संसद में पेश की गयी है। भारत की सैन्य तैयारियां को लेकर यह रिपोर्ट बेहद गंभीर है वह भी तब जब सीमा पर चारों ओर से संकट गहरा रहा है। भारत के सभी दलों को संसद चलाने में सहयोग करना चाहिए, ताकि गंभीर विषयों पर भी चर्चा हो सके, नहीं तो आने वाले समय में भारत की समस्याएं और गहरी हो सकती हैं।

मृत्युंजय दीक्षित