मुक्तक/दोहा

“मुक्तक”

होता रहा उत्थान, जगत का ऐसे वैसे।

मानवता को राह, मिली पग जैसे तैसे।

देख जी रहा वक्त, शख्त सुरताल लगाकर-

सुनो भी अपने गीत, मीत मन कैसे कैसे॥-1

अभ्युदय जिया मान, खान पर पान मचलता।

होगी लाल प्रभात, मनुज सूरा तन तपता।

इतराए दिन रात, सिरात भोर मन मैना-

मिला कदम की ताल, हाल हर पंक्षी उड़ता॥-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ