गीत/नवगीत

गीत

(अररिया में सरफराज आलम की जीत पर लगे पाकिस्तान ज़िंदाबाद,भारत विरोधी नारों का विश्लेषण करती कविता)

तुमने ललकारें सुनी नहीं, कानों में तेल लगाऊं क्या?
आँखों से तुमको दिखा नहीं? अब दूरबीन पकड़ाऊँ क्या?

भारत तेरे टुकड़े होंगे, होगा भारत बर्बाद सुनो
मोदी हारा, मोदी हारा, पाकिस्तां ज़िंदाबाद सुनो

मैं कविता लिख लिख हार गया, कहता आया संकेतों में
सद्भाव अमन की फसल नहीं उगती जेहादी खेतों में

अंजान बनोगे कब तक तुम इन जेहादी हुंकारों से
नज़रे फेरोगे कब तक तुम इन पाकिस्तानी नारों से

इस शस्य श्यामला आँगन को, क्या और बनाकर छोड़ोगे?
क्या कुछ सालों में दिल्ली को लाहौर बनाकर छोड़ोगे?

लो तुम्हें बधाई देता हूँ, मोदी को आज हराने की
हम जात पात के हैं गुलाम बस, ये अहसास कराने की

कुछ नेताओं को गद्दारों का प्यार दुलार ज़रूरी है
जय जय हो पाकिस्तान मगर, मोदी की हार ज़रूरी है

ये जिनको वोट समझते हैं, वो गज़नीवाले भाले हैं
जितने भी तंग मुहल्ले हैं, वो ख्वाब यही बस पाले हैं

भारत माता के हाथों में केसरिया मेहँदी रचे नहीं
जो भारत माँ की बात कहे, कोई भी नेता बचे नहीं

हाथों में नफरत की आरी, आंगन में छिपे कसाई हैं
जो भारत के टुकड़े चाहें, कैसे कह दूं वो भाई हैं,ट

वो सही समय के इंतज़ार में लेकर के हथियार खड़े,ट
तुम एक अररिया समझो मत, सैंकड़ों शहर तैयार खड़े,ट

वो एक अररिया जीते हैं, लेकिन नारों का जोश सुनो
जिस दिन वो दिल्ली जीत गए, तो उड़ जाएंगे होश सुनो

कुछ सीटें ही अब तक ली हैं, पहचान तुम्हारी ले लेंगे
ये सारे भाईजान किसी दिन जान तुम्हारी ले लेंगेल

यह शोर अररिया वाला जिस दिन भी उफान पर आएगा
भारत माता का चीर हरण फिर कोई रोक न पायेगाम

जिस दिन सौ सरफराज भारत की संसद में घुस जाएंगे
काशी-मथुरा की छाती पर, जेहादी ग़दर मचाएंगे

यह कवि ‘गौरव चौहान’ कहे, बस इसीलिए मजबूरी है
मोदी-योगी जैसा कोई, दिल्ली में बहुत ज़रूरी है

राहुल माया ममता की साजिश जान सको, जानो वर्ना
ये कितने राम हितैषी हैं? ये मान सको, मानो वर्ना

हर गली मुहल्ले में बाबर,वबेबाक खड़ा हो जायेगा
तुम हरे हरे करते रहना, सब हरा हरा हो जाएगा

— सकवि गौरव चौहान