कविता

अस्तित्व….

ये औरतों के अस्तित्व
और इसके मायने
क्या समझ भी पाती हैं सभी स्त्रियां
मुझे तो नहीं लगता !

क्योंकि देखा है मैने
बहुत सी घरेलू महिलाओं को
जो अपने पति के इर्द-गिर्द
बिल्कुल पालतू जानवर की भांति
घूमती रहती हैं

वो इसलिए नहीं कि उन्हें बहुत प्रेम है
बल्कि इसलिए कि
पति परमेश्वर को कब किस चीज की जरूरत पड़ जाएं
और न उपलब्ध होने पर
बेचारी पत्नी के जिस्म की खैर नहीं

जी हां बिल्कुल !
गरमाया जाता है उनके गालों को
थप्पड़ों की टंकार और चप्पलों की मार से

इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं !
ये तो औरतों के हिस्से में सदियों से चली आ रही
बल्कि, अब तो इसमें भारी कमी आई है

पर गाँव में स्थिति आज भी चिंताजनक है
लेकिन जो भी हो पुराने वक्त में भी
स्त्रियां मौन थी और आज भी
ज्यादातर खामोश हैं
शायद! भारतीय महिलाओं के संस्कार
उनके अस्तित्व पर भारी पड़ते है।

*बबली सिन्हा

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