लघुकथा

हिम्मतवाली

हर माता-पिता की तरह मेरे माता-पिता ने भी मेरे उज्ज्वल भविष्य का सपना देखा था. मेरे समृद्ध माता-पिता ने यह सपना तो कतई नहीं देखा होगा, कि बेटी झूमा झारग्राम कस्बे में ई-रिक्शा चलाने वाली महिला बने. किसी के चाहने मात्र से ही बात पूरी हो जाय तो कहना ही क्या?
शादी को अभी महज कुछ ही दिन बीते थे कि घर में महाभारत मच गया-
”झूमा, सारे गहने मेरे हवाले कर दो.” मेरे पति बुद्धदेव की यह आवाज थी.
”क्यों?”
”क्यों पूछने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?”
”वह मेरा स्त्रीधन है.”
”तुम मेरी स्त्री, तो तुम्हारा स्त्रीधन मेरा ही तो हुआ न!” पति का हाथ चल गया, साथ ही सोने के सब जेवर भी उसने बेच दिए और मेरी पिटाई होती रही.
ऐसे में घरवाले भी उसे कहां तक रखते. बुद्धदेव को सपरिवार घर से निकाल दिया गया. अब हमारा पूरा परिवार बांस की झोपड़ी में रहने को मजबूर हो गया.
नियति को मुझसे जाने कौन-कौन सा कर्ज लेना था! एक-एक करके दो बेटियां हो गईं. यह दोष भी मेरा ही था न! एक दिन पति ने दोनों बेटियों समेत मुझे जलाने की कोशिश की. हम बच गए और वह फ़रार हो गया. कई वर्षों से वह फरार ही है.

अपने माता-पिता की तरह मैंने भी तो अपनी बेटी के उज्ज्वल भविष्य का सपना देखा था.

मैंने हिम्मत नहीं हारी. बेटी के लिए देखे सपने को पूरा करने के लिए मैं ई-रिक्शा चलाती हूं. मैंने जब पहले दिन ई-रिक्शा चलाया तो उस दिन मैंने 25 रुपये कमाए. ई-रिक्शा पर बैठे लोग मुझे रास्ता बता रहे थे. अब मैं रोज 400 रुपये कमाती हूं. अभी भी हर महीने 4000 हजार रुपये की किश्त अदा करती हूं. यह कर्ज मेरे पति ने लिया था.

मैं जानती हूं, कि बहुत-से लोग मुझे ई-रिक्शा वाली कहते होंगे, लेकिन मुझे यह भी पता है, कि अधिकतर लोग मुझे हिम्मतवाली कहकर मुझसे प्रेरणा लेते हैं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “हिम्मतवाली

  • लीला तिवानी

    आपका हर सपना सच हो सकता है,
    अगर आप उसे पाने की हिम्मत रखते हैं.

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