गीत/नवगीत

माता रानी के चरणों में समर्पित एक गीत….

हे मात अम्बे रानी, हे मात अम्बे रानी।
सुन लो पुकार मेरी, कष्टों में जिंदगानी।

महिषा असुर से फिर माँ संसार डर रहा है।
मधु और दैत्य कैटव अट्टहास कर रहा है।
अवतार लेके फिर माँ दुनिया है ये बचानी।
हे मात अम्बे रानी हे मात अम्बे रानी।

नारी से जन्म लेकर जो रौंदता है नारी।
शायद न जानता वो नारी है नर पे भारी।
भूले गुमाँ में उनकी औकात है दिखानी।
हे मात अम्बे रानी हे मात अम्बे रानी।

अबला समझ के पापी डाले है दृष्टि तिरछी।
आओ पधारो माता लेकर के भाला बरछी।
संहार कर दे इनका बन चण्डिका भवानी।
हे मात अम्बे रानी हे मात अम्बे रानी।

इन पापियों के बल को जगदम्ब कर दे भंजन।
फिर से धरा पे अम्बे कर धर्म ध्वनि की “गुंजन”।
दिल में सभी के सरिता फिर प्रेम की बहानी।
हे मात अम्बे रानी हे मात अम्बे रानी।

_____________©अनहद गुंजन®

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*