गीत/नवगीत

गीत १

होली पर मन ही मन खेले
लगा अबीर, गुलाल हम।
प्रिय! कुछ पल के लिए बन गये
सोनी तुम,महिवाल हम।
अमराई सपनों की महकी,
 फूले फूल पलाश के।
हरसिंगार झरे धरती पर
बन्ध कसे भुजपाश के।
खुशियों के फब्बारे जैसे
भरने लगे उछाल हम।
गन्धबिंधी सांसों ने प्रेयसि!
 तुम्हें पकडकर खींच लिया।
प्राणों ने उठ अन्तर्घट का
सारा रंग उंडेल दिया।
राग-रंगीले दृश्य देखकर
होने लगे निहाल हम।
चाहों ने आहों से भर दी
अपनी आंच संभालकर।
मनमानी बातें कर लीं
आंखों में आंखें डालकर।
रँगोलियों से रहे रोचते
गोरे-गोरे गाल हम।
मोरपखा मनमौजीपन का
सजा तुम्हारे शीश पर।
वेणु बजाते लगे नाचने
तुम कान्हा का रूप धर।
इकतारे सँग लगे बजाने
सूरा-सी खड़ताल हम।