गीतिका/ग़ज़ल

तू भी झेलकर देख

भूखे की भूख का भी तू ख़्याल कर
सिर्फ़ खुद को ही मत मालामाल कर ।
मालपुओं की पार्टियाँ खूब उड़ाता है
दिल को रख कभी ज़मीं पर उतार कर ।
ज़िंदगी से ज्ञान थोड़ा ले ले तू अज्ञानी
गरीबों की ज़िन्दगी में भी थोड़ी बहार कर ।
पैसों की चकाचौंध में फँस गया है तू
उस दुनिया से बाहर भी ज़रा देख जी कर ।
अत्याचारों से परे भी दुनिया कुछ और है
देख तू भी तो शोषक का चोला उतार कर ।
जी रहे हैं कुपोषण में कितने मासूम , मालूम है
कभी देख उनका भी जीवन तू ज़रा जा कर ।
ठंड में सिकुड़ते लोग हैं कैसे रातें गुज़ारते
तू पाता है सुख रजाइयों में रातें गुज़ार कर ।
उनके दुखों को ज़रा तू भी झेलकर देख
दुआएँ देंगे तुझे वो दिल से मनुहार कर ।
— रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘