कवितापद्य साहित्य

माँ तू भगवान से भी अधिक दयालु —

माँ तू भगवान से भी अधिक दयालु
तेरे आँचल में रहकर सारा सुख पाया
गलतियों की सजा ज़रूर देता है ईश्वर
पर तू ही है जिससे हमेशा माफ़ी पाया।
तेरी बखान में पूरी पोथी लिख डालूँ
माँ तू भगवान से भी अधिक दयालु ||
तेरा आँचल है ममता से भरा भरा
तेरे आँचल में ही है मेरा संसार सारा
सारे जहाँ ने जिसे कमजोर कह ठुकराया
उसे भी तूने ताउम्र अपने आँचल में छुपाया।
तेरी ममता के गुण जरा मैं गा लूँ
माँ तू भगवान से भी अधिक दयालु ।।
माँ तूने गर्भ से ही है पाला मुझको
कष्ट हुआ न जाने कितना तुझको
है नहीं तुझे किसी भी दर्द का तनिक भी गम
तूने सहा मेरी नादानियों को सदा कहके कम
तूने अपनी ममता से हमेशा मुझे है दुलारा
मेरे कष्टों से तूने हमेशा मुझे उबारा
बहका जब कभी भी मेरा कमजोर मन
तूने रास्ता दिखाया पथ-प्रदर्शक बन।
तेरे उपकारों के गुण जरा मैं गा लूँ
माँ तू भगवान से भी अधिक दयालु ||
माँ तूने मेरा कितना दिया है साथ
बचपन में सिखाया चलना पकड़ कर हाथ
लिखना-पढ़ना भी तूने ही सिखाया
बोलना एवं सम्मान करना तूने ही समझाया
संस्कारों के छीटों से तूने
यह नन्हा पौधा किया बड़ा
पर आज जो तू हो गयी बूढी
बनना चाहिए था जब मुझको तेरी छड़ी
मैंने तेरे दिए उन संस्कारों को भुला दिया
अपने फर्ज को भूल तुझे अकेला छोड़ दिया।
अपने स्वार्थी तन-मन को निशदिन धिक्कारूं
माँ तू भगवान से भी अधिक दयालु ||
माँ तूने मेरे छोटे से छोटे दुःख के लिए
अपनी सारी की सारी रैन है गंवाई
मुझे फूलों पर सुलाने के लिए
स्वयं काँटों पर ही सदा सोई
मेरा पसीना बहा है जहाँ
तूने अपना खून बहाया है वहाँ
मुझे तनिक खरोंच भी ना आये कहीं
तू ढ़ाल बनकर सदा साथ ही रही |
तेरे अहसानों के गुण जरा मैं गा लूँ
माँ तू भगवान से भी अधिक दयालु ||
माँ तू आज कहीं खो गई
शायद स्वर्ग लोक की रानी हो गई
जब तू नहीं है मेरे आसपास कहीं
तेरी कमी मुझको बहुत ही खली
बस मुझ पर एक कृपा करना माँ
हर जन्म में तू ही मेरी माँ, बनना माँ |
ताकि तेरे आँचल का सुख फिर से मैं पा लूँ
क्योंकि तू तो है भगवान से भी अधिक दयालु ||
तेरा बखान करूँ अपार पर मैं शब्दहीन हूँ
मेरी माँ तेरे गुणों के आगे तो मैं दीनहीन हूँ।।
||सविता मिश्रा ‘अक्षजा’।।

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|