कविता

ऐसे बनती है

 

जब पौ फटने के बाद
चिड़ियों का स्वरवंदन होता है
जब सिकर दोपहर में
पसीने को छिटक कर
किसान बीज बोता है
हल के फालों से
धरती सुसज्जित होती है
जब गुड़िया गरीब की
कुटिया में रोटी के लिए रोती है

ऐसे बनती है “कविता”

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733