सामाजिक

लेख– पत्रकारिता का पेशा कब महफ़ूज होगा।

लोगों को यह कहते हुए सुना था, कि सच कड़वा होता है। अब पता चल रहा है। भारत में तो पत्रकारों के लिए सच कड़वा ही नहीं जानलेवा भी साबित हो रहा है। जिसकी हालिया समय में बानगी पेश की है, मध्यप्रदेश और बिहार की घटनाओं ने। ऐसा इसलिए कह रहें हैं, क्योंकि मध्यप्रदेश के भिंड जिले में संदीप शर्मा की ट्रक से टक्कर होने से मौत हो गई, और बिहार के आरा जिले में नवीन निश्चल और विजय सिंह को तेज़ रफ़्तार की गाड़ी ने रौंद दिया। इन हादसों को दुर्घटनाएं साबित किया जाना मुश्किल लगता है, क्योंकि बिहार के आरा की घटना का तार ग्राम प्रधान से जुड़ता है, तो वहीं मध्यप्रदेश के भिंड में जिस पत्रकार की मौत हुई, उसने पुलिस अधिकारी और रेत माफ़िया के विरुद्ध स्टिंग ऑपरेशन किया था।

तो इन दो राज्यों में सच को उज़ागर करने वाले दिए को अगर बुझाने का काम किया गया, तो यह बड़े दुर्भाग्य की बात है। उससे भी बड़ा विचलन तो यह बात पैदा करती है, कि दोनों राज्यों में हुई घटना में पुलिस की संलिप्तता कथित रूप से सामने आ रहीं है। मानते हैं, कि आज के दौर की पत्रकारिता कमज़ोर पड़ी है। जनसरोकार से ज़ुड़े क्षेत्र में, लेकिन उसके पीछे की सच्चाई को भी तो देखना चाहिए। क्यों जो पत्रकारिता आज़ादी के पूर्व मिशन थी, वह सत्ता के समीप आज जाती दिख रहीं। वैसे एक सजग पत्रकार का काम सत्ता, प्रशासन और समाज के बीच निर्भीक रूप से सेतु का काम करना होता है। अगर इस कार्य में समाज को आइना दिखाने वाले पत्रकार को असुरक्षा का माहौल लगे। तो पुलिस व्यवस्था औऱ रहनुमाई व्यवस्था को उन्हें सुरक्षित माहौल उपलब्ध कराना चाहिए, लेकिन आज तो गंगा उल्टी दिशा में बह रही है। रहनुमाई टोली भी चाहती है, कि पत्रकारिता के लोग उनकी चिलिम भरे, फ़िर वे चिलिम भरने वाले पत्रकारों को सम्मानित भी करते हैं। ऐसे में समस्या उन पत्रकारों के समकक्ष उत्पन्न हो जाती है, जो सच को प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में पिछले वर्ष 2017 में अगर 9 पत्रकार मारे गए, और बीते वर्ष को एक दशक के भीतर का सबसे ख़राब वर्ष माना गया, मतलब पत्रकारिता का पेशा अब ख़तरों से खाली नहीं।

जागेंद्र सिंह, अक्षय सिंह, उमेश राजपूत, राजेश मिश्र, नवीन गुप्ता और अब मध्यप्रदेश के भिंड जिले के संदीप शर्मा। ये सभी वे नाम है। जो पत्रकारिता के सिद्धांतों पर बढ़ रहे थे, औऱ मौत के मुंह तक पहुँच गए। ऐसे में अगर पत्रकारिता के जो प्रमुख सिद्धान्त हैं। जिसमें निष्पक्षता और सत्य उजागर करना आदि बातें आती है, वहीं अब उनके लिए चुनौतियां बनती जा रही। फ़िर ईमानदार और निष्पक्ष पत्रकारिता का बिगुल कमजोर पड़ना स्वाभाविक है। इसके अलावा आज समाज का जो हिस्सा निष्पक्ष खबरों की पैठ अपने तक चाहता है, वहीं सोशल मीडिया पर पत्रकारों को गाली और धमकी देता है, औऱ रिपोर्टिंग के दौरान मारे गए पत्रकारों के लिए इंसाफ़ की मांग करने के लिए भी आगे आने से कतराता है। फ़िर यह उम्मीद कैसे समाज कर लेता है, कि एक पत्रकार अपनी लेखनी से समाज की दशा और दिशा का निर्धारण करता प्रतीत होगा। पत्रकारिता भी पेशे में तब्दील हो गई है, और हो भी क्यों न। अलग से कोई इंतजाम तो है नहीं उसके लिए देश में। आज अपने पेशे के जरिए फ़िर भी वह देश और समाज की बुराइयों और कुरीतियों को उजागर करता है। तो उसे बेहतर वातावरण काम करने के लिए मयस्सर क्यों नहीं हो पा रहा।

आज के दौर में हम पत्रकारिता के पेशे से उम्मीद करते हैं, कि वह निष्पक्ष, निडर और स्वतंत्र होकर कार्य करें। साथ में किसी विचारधारा की सड़ांध से दूर हो। पर यह न कोई संस्था औऱ संगठन सोच रही कि पत्रकारों की जिंदगी कैसे सुरक्षित की जाए। कैसे उन्हें बेहतर जिंदगी उपलब्ध कराई जाए। फ़िर ऐसे में लोकतंत्र का कथित चौथा स्तम्भ सत्ता के चरणों मे शीश झुकाने में ही सहूलियत महसूस करता है। तो फ़िर उस पर बेजा सवाल खड़ा करना भी आज के दौर में सही नहीं। लोकतंत्र में चौथा स्तम्भ का कार्य सिर्फ़ इतना नहीं की, वह सरकारी नीतियों की आलोचना ही करें। बल्कि उसका कार्य सरकार की नीतियों की स्वतंत्र रूप से समीक्षा करना होता है। जिसमें ज़िक्र सरकारी तंत्र की तारीफ़ औऱ खामियों दोनों का होना जरुरी है। लेकिन आज तुलनात्मक समीक्षा की कमी हो रहीं, जो चिंताजनक स्थिति है। आज कल बडे शहरों में ही नहीं छोटे शहरों में पत्रकारों पर हमले आम हो गए हैं। जिसके सबसे ज़्यादा शिकार होते हैं, ज़मीनी धरातल से खबरों को खोजकर लाने वाले लोग। अगर आज समाज में पत्रकारों को भेड़िए की तरह मारा जा रहा, उनको वे सुविधाएं नहीं मिल रही। जो अन्य पेशे के लोगों को मयस्सर होती है। फ़िर हम हर ख़ामी का ठीकरा पत्रकारों के सिर पर भी नहीं फोड़ सकते। पत्रकारिता के लिए अगर सभ्य समाज में खतरा बढ़ता जाएगा, तो यह स्वाभाविक बात है। गम्भीर और जनसरोकार से ज़ुड़े मुद्दों की गुणवत्ता और संख्या में गिरावट ज़रूर दिखेगी। साथ में सत्ता की गोदी में, जनता और सरकार के बीच कार्य करने वाला सेतुबंध बैठता हुआ भी दिखेगा। तो इस पर किसी को कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।

मध्यप्रदेश के भिंड में एक ख़बरिया चैनल के पत्रकार को मौत के घाट इसलिए उतार दिया गया, क्योंकि उसने रेत माफ़िया का स्टिंग ऑपरेशन किया था। तो यह लोकतंत्र के समक्ष बहुत बड़ा दुर्भाग्य है, कि वह जनसंवाद का काम करने वाली व्यवस्था को भी सुरक्षित वातावरण उपलब्ध नहीं करा पा रही। वैसे जिस जमात से जनसरोकार के विषय को तूल देने की महत्वाकांक्षा हमारा समाज रखता है, उसे अपने पेशे की ख़ातिर जान गंवाने का देश में कोई पहली मर्तबा बात नहीं। यह तो लोकतांत्रिक व्यवस्था का दस्तूर बनता जा रहा। जिसमें पहले 2015 में 45 दिनों के भीतर चार पत्रकारों की हत्या उत्तर प्रदेश में हुई थी, तो सवाल स्वंतत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता के साथ पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर उठा था। यहां एक बात यह स्पष्ट मानी जा सकती है, कि आज सभी मौत जो पत्रकारिता के क्षेत्र में हो रही। वो सच उजागर करने वालों की नहीं हो सकती, क्योंकि पत्रकारिता व्यवसाय का रूप ले चुकी है। तो यह उम्मीद करना कि सौ-फ़ीसद पत्रकार ईमानदार ही होंगे यह तो बेईमानी होगी। फ़िर भी प्रेस आज़ादी की अंतरराष्ट्रीय सूची में भारत 136 वें स्थान पर है। तो यह साफ़ है , पत्रकार भारत में सुरक्षित नहीं।

इसके साथ कमेटी टू प्रोटेक्स जॉर्नलिस्ट भी कहती है, कि भ्रष्टाचार को कवर करने वाले भारतीय पत्रकार को जान का ख़तरा ज़्यादा होता है, तो इस बीमारी से सच की दुनिया दिखाने वालों को आज़ाद करवाना समाज, सरकार औऱ संस्थाओं का काम होना चाहिए। 2015 में कमेटी टू प्रोटेक्स जॉर्नलिस्ट की रिपोर्ट ने कहा था, कि रिपोर्टिंग के वक्त भारतीय पत्रकारों को सुरक्षित माहौल अभी तक उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। इसके साथ अगर प्रेस कॉउंसिल भी कहता है, कि पत्रकारों की हत्या में शामिल कथित लोग सजा से बच निकलते हैं। फ़िर ऐसे में पत्रकारों की टोली सुरक्षित कैसे रह सकती है। ऐसे में अगर सिर्फ़ रहनुमाई व्यवस्था जांच का आदेश देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती है, औऱ समाज को नई दिशा और दशा दिखाने वाले के हत्यारों पर कोई आंच आती नहीं। फ़िर यह उस पेशे के लोगों के साथ अन्याय हो रहा, जो अपना सर्वस्व त्याग, समाज के लिए करने को तैयार रहते हैं। मध्यप्रदेश सूबे में पत्रकार की मौत के बाद जांच की बात केंद्रीय सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने की। उन्होंने कहा, कि मध्यप्रदेश की सरकार को उचित जांच के बाद कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने साथ में कहा सत्य को उजागर करना बहुत ज़रूरी है। पत्रकारिता सिर्फ़ पेशा नहीं, जीवन जीने का सिद्धांत है। पत्रकार बहुत जिम्मेदारी का काम करते हैं, उनके जीवन को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए, साथ में पत्रकारों को काम करने की आज़ादी। तभी लोकतंत्र मज़बूती की तरफ़ अग्रसर होगा।

महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896