राजनीति

भयावह त्रासदी हैं बिहार और बंगाल के दंगे

रामनवमी के दिन से ही बिहार और बंगाल हिंसा की आग में जल रहे हैं, लेकिन देश के सभी सांसद संसद ठप करने में और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी खिसकती जमीन को बचाने के लिए दिल्ली में डेरा डालकर मोदी विरोधी मोर्चा बनाने में जुटी हुई हैं। लगातार तीन दिनों तक बंगाल हिंसा की आग में जलता रहा। केेंद्र सरकार ने ममता बनर्जी से रिपोर्ट तलब कर ली, तो ममता ने टका सा जवाब दे दिया कि केंद्र ने बिहार सरकार से रिपोर्ट क्यों नहीं मांगी? ममता बनर्जी को आसनसोल से पलायन कर रहे हजारों हिंदुओं की चिंता नहीं है लेकिन उन्हें एअर इंडिया की हिस्सेदारी को बेचे जाने की बड़ी चिंता है? ममता को बंगाल की नहीं, यूपी में बुआ-बबुआ गठबंधन बना रहे इसकी बड़ी चिंता है।
यह बात पूरी तरह से सत्य है कि पूर्वोत्तर में भाजपा को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद सभी विरोधी दल बुरी तरह से बौरा गये हैं। उनमें से ममता बनर्जी एक है। बिहार और बंगाल में हिंसा के दौर में सेकुलर मीडिया की रिर्पोटिंग भी काफी खतरनाक तरीके से की गयी। हिंसा की तह में जाये बगैर सभी सेकुलर मीडिया में केवल बीजेपी और संघ को गाली देने की होड़ प्रारम्भ हो गयी। बिहार में तो तेजस्वी यादव ने जमकर अपनी भड़ास निकाली। उन्होंने यहां तक बयान दिया कि देश को साम्प्रदायिकता की आग से बचाने के लिए लालू ने अडवाणी जी को गिरफ्तार किया, लेकिन नीतिश कुमार भाजपा नेताओं को बचा रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने भी अपने बचाव में बयानबाजी की, जिसका असर यह हुआ कि बिहार में अभी भी आग लगी हुई है। आज बिहार के कम से कम चार जिले हिंसा की आग में जल रहे हैं। दोनों राज्यों में हिंसा का पैटर्न लगभग एक ही जैसा है।
दंगों के कारण सबसे बुरा हाल बंगाल का हो रहा है। बंगाल के पुरूलिया, मुर्शिदाबाद, वर्धमान वेस्ट और रानीगंज सहित बंगाल के तमाम हिस्सों में हिंसा की घटनायें हुई, जिनमें सबसे भवायह मंजर आसनसोल में देखा जा रहा है। वहां के स्थानीय नागरिकों का कहना है कि रामनवमी के दिन शांतिपूर्वक तरीके से निकल रहे जुलूस में बज रहे डीजे और उसके मार्ग को लेकर समुदाय विशेष के लोगों ने अपना विरोध दर्ज कराया। कहा-सुनी के बाद मामला शांत हो रहा था, लेकिन तभी लोगों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी और फिर तोड़फोड़, हिंसा आगजनी और अफवाहों का दौर शुरू हो गया। पूरा आसनसोल शहर तीन दिनों तक हिंसा की आग में जलता रहा। लोंगोे के घरों और दुकानों तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों को लगातंर तीन दिनों तक लूटा गया। महिलाओं के साथ जमकर छेड़छाड़ तथा रेप की घटनाओं के समाचार भी प्राप्त हुए हैं।
बंगाल के हालात निश्चय ही बेहद डरावने हो गये हैं। वहां का स्थानीय प्रशासन पूरी तरह से नपुंसक बन गया है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि हम लोग अपने आप को बचाने के लिए सभी पुलिस अधिकारियों तथा अन्य सहायता नंबरों पर फोन करते रहे, लेकिन किसी के कांनों में जूं तक नहीं रेंगी। जब केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो आसनसोल के हालातों का जायजा लेने के लिए वहां पर जा रहे थे, तब पुलिस के साथ तीखी झड़प हुई, जिसके बाद उन पर ही एफआईआर दर्ज हो गयी। जवाब मे उन्हें भी एफआईआर करानी पड़ रही है। आज हजारों हिंदुओं ने पलायन कर दिया है तथा वहां के रेलवे स्टेशन ऐसे हिन्दुओं से भरे पड़े हैं।
खबर तो यहां तक है कि राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी को रामनवमी के जुलूस के दौरान हुई हिंसा में घायल डीसीपी से मिलने नहीं दिया गया और उन्हें आसनसोल भी नहीं जाने दिया गया। आसनसोल की घटना एक भयावह त्रासदी है। आज देश की संसद व कोर्ट के पास ऐसी घटनाओं पर बहस के लिए समय नहीं है। पूरा बंगाल आज हिंसा की आग में जल रहा है। बंगाल के पुरूलिया, मुर्शिदाबाद, वर्धमान वेस्ट और रानीगंज आदि जिले हिंसा की चपेट में हैं। इंटरनेट की सेवा बंद कर दी गयी है। लेकिन बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल को अपनी जागीर समझ लिया है तथा वह केवल एक विशेष समुदाय को लक्ष्य बनाकर अपनी राजनैतिक रोटियां सेेंक रही हैं। ममता को पता है कि अब बंगाल में आने वाले चुनावों में उनका भाजपा से ही सीधा मुकाबला होने जा रहा है। इसलिए बंगाल के दंगे एक सुनियोजित साजिश के तहत हो रहे हैं।
अब समय आ गया है कि बंगाल सरकार के खिलाफ कड़ा कदम उठाये और वहां राष्ट्रपति शासन लगाकर दंगों की गहन जांच कराकर हिंसा प्रभावित लोगों को उचित मुआवजा व सहायता प्रदान करवाये, नहीं तो ममता के गुंडे बंगाल में हिंदुओं का जीना हराम करने वाले हैं। बंगाल की हिंसा में इस बात की जांच करना बेहद जरूरी है कि कहीं इस हिंसा की आड़ में बेरोजगार वामपंथी व अन्य कांग्रेसी उपद्रवियों का हाथ तो नहीं है। साथ ही इस बात की जांच बेहद आवश्यक है कि इन दंगों के पीछे बांग्लादेशी घुसपैठियों तथा रोहिंग्या मुसलमानों की भूमिका तो नहीं है। बंगाल में रामनवमी के दौरान भड़की हिंसा में ममता बनर्जी व भाजपा व संघ को जमकर गाली तो दे रहे हैं लेकिन यह नहीं पता कर रहे कि कहीं इस हिंसा के पीछे कहीं ममता दीदी की तृणमूल कांग्रेस के नेताओं का तो हाथ नहीं है।
विगत दिनों रामनवमी के पहले से ही ममता बनर्जी ने अपनी बयानबाजी के कारण राज्य में तनाव के हालात पैदा कर दिये थे। भाजपा के जुलूसों से आगे निकलने के लिए ममता ने अपने कार्यकर्ताओं को जुलूस निकालने के आदेश दिये, लेकिन राज्य के अधिकांश हिस्सों में भाजपा सहित तमाम हिंदू संगठनों को हथियारों के साथ जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी जा रही थी। मीडिया रिपोर्टांे में रामनवमी के पहले से ही राज्य में तनाव व हिंसा का अंदेशा हो रहा था। लेकिन राज्य के तनाव को दरकिनार करते हुए ममता को तो दिल्ली में देश का पीएम बनने के सपने आ रहे थे। बंगाल जल रहा था वह पर्यटन करने के लिए दिल्ली आ गयी। बंगाल की जमीन को बचा नहीं पा रही है और पीएम मोदी व बीजेपी को घेरने का जबर्दस्त प्लान बना रही हैं। ममता को पीएम मोदी व केंद्र की नीतियां पसंद नहीं हैं। राज्य मेें शांति व स्थिरता के लिए वह केंद्र की सहायता नहीं चाहती। बंगाल का प्रशासन राज्यपाल को अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन नहीं करने देता है।
यही मुस्लिम तुष्टीकरण में संलिप्त ममता बनर्जी का तीसरे मोर्चे का राजनैतिक प्लान है। वह हिंदुओं के खून की होली खेल रही हैं। बंगाल में आज हिंदू समुदाय थर-थर कांप रहा हैं। पता नहीं कब कोई मुस्लिम गुंडा उनकी बहन-बेटी को उठाकर ले जाये। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का यह कहना सही है कि जिस समय बंगाल जल रहा था, उस समय ममता बनर्जी अपने राजनैतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए दिल्ली में है। यह साबित हो गया है कि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस से जुडे़ लोग न केवल भगवान राम के निर्दोष भक्तों को निशाना बना रहे हैं, अपितु उन्होंने पुलिसकर्मियों पर भी हमला किया। आज जब देश में सबका साथ सबका विकास की बात चल रही है तथा भारत को न्यू इंडिया बनाने की अपील की जा रही है, तब सेकुलर विचारधारा वाले तथाकथित राजनैतिक दलोें के राज्यों में बेहद सुनियोजित साजिशेें करके दंगे कराये जा रहे हैं तथा देश के वातवारण को गलत तरीके से मोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।
दंगे बिहार और बंगाल में हो रहे हैं तथा मुस्लिम तुष्टीकरण में लगे नेता केवल भाजपा और मोदी को ही दोष दे रहे हैं। पहले बंगाल में वामपंथियों की दादागीरी चलती थी, वह अब केरल में अपनी अंतिम सांसों को गिन रहा है। वहीं दूसरी ओर अब बंगाल में ममता की दादागीरी का दौर समापन की ओर है।
मृत्युंजय दीक्षित