कविता

कविता – पर्यावरण

चल रहे हम किधर
खुद ही नहीं पता है
मानव विनाशलीला
खुद ही खोद रहा है।
चलती है मेरी नैया
डुलती है मेरी नैया
हम कहाँ बढ़ रहे है
खुद ही नहीं पता है
मानव……………….
चलते है हम आगे
देखते नहीं हम पीछे
विकास के चक्कर में
खुद कब्र खोद रहा है
मानव……………….
पर्यावरण की रक्षा
खुद कर नहीं रहा है
नीज तत्व की निशानी
खुद ही मिटा रहा है
मानव………………
ऐसा न हो भविष्य में
की सुख जाए पयोधि
न बरस पाए पयोधर
पयाम दे रहा है
मानव……………….
वैश्विक स्तर पर बढ़ते
पर्यावरण में प्रदूषण
पृथ्वी वायुमंडल का
तापमान बढ़ रहा है
मानव……………..
अपने ही स्वार्थ चलते
ये तप रही है दुनिया
ओजोन परत में भी
छेद हो रहा है
मानव……………
मानव अपनी मंगल में
काट रहा है जंगल
दुनिया को तो वह
शमसान बना रहा
मानव…………..
वातावरण में खूब
बढ़ रहा प्रदुषण
चैन से भी न मानव
साँस ले रहा है
मानव………..
अपनी ही सुख के चलते
परिविस्ट हुआ मानव
निज स्वार्थ में वह
परिशुन्य हो रहा है
मानव विनाशलीला
खुद ही खोद रहा है।
रंजन कुमार प्रसाद

रंजन कुमार प्रसाद

माध्यमिक शिक्षक उत्क्रमित हाइस्कूल तोरनी,करगहर,रोहतास, बिहार, पता- ग्राम-सकरी,पोस्ट-कुदरा, जिला-कैमूर(भभुआ) बिहार, दूरभाष-9931580972 , ranjangupta9931@gmail.com