कविता

हाँ

हाँ वो मारी गयी
बहुत पहले ही
नही बच पायी
लाख कोशिश करने के बाद भी
कसूर तो कुछ नही था
बस हाँ वो सुन्दर थी
सुशील थी, मनमोहक थी
यही शायद उसकी कसूर थी
तभी दुनियॉ के ऑखो में
किरकिरी की भांति गड़ गयी
और जैसे ही बालावस्था से
किशोरावस्था में कदम- रखी
हो गयी शिकार
जंगली भेड़ियो की।
निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४