गीतिका/ग़ज़ल

है मुहब्बत अगर तो अना छोड़ दो…..

है मुहब्बत अगर तो अना छोड़ दो।
या मुहब्बत का ये फैसला छोड़ दो।

ख्वाहिशे वस्ल है फिर ये कैसी हया
तुम बढाओ कदम, ये हया छोड़ दो।

मुझको हँसना कभी रास आता नहीं
अक्स को मेरे तुम ग़मज़दा छोड़ दो।

लाज आती है मुझको , सरेबज्म यूँ
दम ब दम अब मुझे देखना छोड़ दो।

कैसे उड़ता है रंगे सुखन देखना
जिक्र मेरा वहाँ बस जरा छोड़ दो।

इश्क वालो ये आदत तो अच्छी नहीं
एक चिंगारी को तुम दबा छोड़ दो।

मय बरसती हैं “गुंजन”तेरी आँख से
और कहती है दुनिया नशा छोड़ दो।

अनहद गुंजन

 

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*