लघुकथा

निःशब्द

” क्या हुआ माँ ? ये भाभी जी कहाँ जा रही हैं ? ”

 ” अब तेरे भैया रहे नहीं ! अब यह विधवा यहां क्या करेगी ? जा रही है अपने भैया के पास । “
 ” क्यों माँ ? इसके भैया इसके अपने हैं और हम क्या इसके कोई नहीं ? ऐसा क्यों मां ? “
” अरे तू नहीं समझेगा ! अभी उसकी उम्र ही क्या है ? अभी तो बच्चे भी नहीं हैं ईसके जिसके सहारे वह अपना जीवन काट लेती । कोई अच्छा सा घर वर देखकर इसका भाई इसकी शादी करा देगा । बेचारी खुश रहेगी । “
 ” तो क्या हमारा घर अच्छा नहीं है माँ ? और क्या मैं अच्छा वर नहीं ? “
 अब माँ निःशब्द थी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “निःशब्द

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, बहुत सुंदर कथा. अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

Comments are closed.