कविता

मत करो

जवाहरात के पन्नों में 
अक्सर 
दरारें होती हैं
जो,
केवल आंख से ही 
दिखाई दे जाती हैं
इसलिए इनके दाम कम लगते हैं
कुछ लोग उनके इस दोष को 
छिपाने के लिए
पन्नों पर तेल चुपड़ देते हैं
लेकिन,
सच्चे पारखी जौहरी की आंखों से
वे छिप नहीं पाती हैं
इसलिए
पन्नों की दरारों को 
भरने की
कोशिश मत करो.

 

कुछ लोग 
किसी को भी 
साबित नहीं रहने देते हैं
इसलिए
दीवारों तक में 
दरारें डालने की 
कोशिश करते हैं
दीवारों में भले ही
दरारें न पड़ पाएं
पर, 
उनके हाथों-पांवों में 
अवश्य 
दरारें पड़ सकती हैं
इसलिए
दीवारों में 
दरारें डालने की 
कोशिश मत करो.

 

कुछ लोग 
अपने घर को तो 
जोड़ नहीं पाते
पर,
दूसरों के घरों को 
तोड़ने की 
कोशिश करते हैं
दूसरों के घरों में भले ही
फूट न पड़ पाए
पर, 
उनकी  
नकारात्मक सोच के कारण 
उनके अपने घर तो 
अवश्य ही
तहस-नहस हो जाते हैं
इसलिए
दूसरों के घरों को
तोड़ने की कोशिश 
मत करो,
मत करो,
मत करो.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “मत करो

  • लीला तिवानी

    ‘अक्लमंद वह है जो दो अच्छी बातों में यह जान सके कि ज्यादा अच्छी बात कौन सी है। और दो बुरी बातों में यह जान सके कि ज्यादा बुरी बात कौन सी है। अच्छी व बुरी बातों में पहचान करने के बाद यदि उसे अच्छी बात बोलनी हो तो वह बात बोले जो ज्यादा अच्छी हो और यदि बुरी बात बोलने की लाचारी पैदा हो जाए तो वह बोले जो कम बुरी हो। यह बात सुनने में बेशक मामूली लग रही है, पर यदि इंसान इस राह पर चले तो वह न सिर्फ अक्लमंद कहलाएगा बल्कि बड़ी से बड़ी मुसीबत टालने में भी कामयाब हो जाएगा।’

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