लघुकथा

इंसान का बच्चा

चश्मा माथे पर चढ़ाए वह थुलथुल काया विदेशी नस्ल के पामेरियन प्रजाति के पिल्ले को अपनी गोद में लिए हुए बड़ी अदा से अपनी वातानुकूलित कार से बाहर निकली । पिल्ले के बालों को सहलाकर उसे पुचकारते हुए उसने दुकानदार से कहा ,” भैया ! एक पेडिग्री ( कुत्ते के खाने योग्य बनाई गई एक विशेष बिस्किट ) देना ! “
तभी सात आठ साल का मैले कुचैले चिथड़े जिस्म पर झुलाता वह मासूम उसके सामने हाथ फैलाकर गिड़गिड़ा उठा ,” मेमसाब ! कुछ खाने को दे दो मेमसाब ! दो दिन से भूखा हूँ ! “
” चल हट ! ” कहकर बड़ी अदा से पिल्ले को गोद में लिए वह अपनी कार में बैठी और फुर्र हो गयी ।
उस इंसान के बच्चे की नजरों के सामने वह कुत्ते का पिल्ला और वह बिस्किट का बड़ा पाकिट बड़ी देर तक घूमता रहा ।

 

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “इंसान का बच्चा

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, अति सुंदर कथा. अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

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