गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – कसम खाओ

बचायें हम मिली जो उस अमानत को कसम खाओ
न भूलोगे शहीदों की शहादत को कसम खाओ

जन्म भू है हमारी ये , हमें दिल – जान से प्यारी
बचा लेंगे बचानी है मुहब्बत को कसम खाओ

हमारा देश है आज़ाद हम भूलें नहीं बातें
मिटेंगे हम सभी इसकी हिफ़ाज़त को कसम खाओ

लुटाते जान सरहद पर , उन्हें प्रणाम करते हैं
बदल दें भ्रष्ट होती इस सियासत को कसम खाओ

नही मौसम हमें मदहोश ये करता हुआ भाता
रहें यूँ ही बहारें अब सलामत को कसम खाओ

क़दम जो भी रखे दुश्मन , यहाँ की सरज़मीं पर तो
भरो सब जोश बाँहों में बगावत को कसम खाओ

धरम के नाम पर ‘ रश्मि मज़हबी दंगे करें अब जो
समझ लो तुम मिटाने की अदावत को कसम खाओ

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’