बाल कविताबाल कहानीशिशुगीत

जैसी संगति बैठिए

मोहन एक नेक लड़का था,
पढ़ने-लिखने में होशियार,
सब करते तारीफ, बड़े भी,
करते उसको बेहद प्यार.

उसके सब साथी अच्छे थे,
करते जन-सेवा का काम,
पढ़-लिखकर और खेल-कूदकर,
करते थे वो खूब आराम.

एक बार मिले सब साथी,
जो पिक्चर के थे शौकीन,
पिक्चर की टिकटों के कारण,
रुपये चुराते वे दो-तीन.

रोज शाम को देर से आना,
मोहन की माता को खटका,
बात पड़ी पापा के कानों,
उनका भी तब माथा ठनका.

बड़े ध्यान से देखा उसको,
साथी भी सब परख लिए,
उसको सबक सिखाने हेतु,
पापा ने कुछ आम लिए.

रात को देर से मोहन आया,
कुछ सहमा-सा और घबराया,
पापा ने उसको बुलवाकर,
आमों का पैकेट दिखाया.

बोले, ”ये अलमारी में रख लो,
पक जाएं तो तुम खा लेना”,
मोहन खुश था आम मिले थे,
अलमारी में उन्हें रख दिया.

एक आम था जरा सड़ा-सा,
पापा बोले, ”चिंता मत कर”,
मोहन भूला उनको रखकर,
खूब पिक्चरें देखीं डटकर.

चौथे दिन अलमारी खोली,
सारे आम सड़े थे उसमें,
मोहन खूब दुःखी था मन में,
पापा बोले, ”आया समझ में?

जैसे एक सड़ी मछली से,
सारा सर ही सड़ जाता है,
वैसे गलत साथियों से ही,
नाश मनुज का हो जाता है.

मोहन सारी बात समझकर,
बोला, ”पापा माफ करें.
अब न करूंगा ऐसी गलती,
एक बार बस माफ करें”.

तब से अच्छी संगति करके,
मोहन ने की नेक कमाई,
जैसी संगति बैठिए साधो,
वैसी ही गति होइ सदा ही.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “जैसी संगति बैठिए

  • मनमोहन कुमार आर्य

    शिक्षाप्रद उत्तम रचना। बहुत बहुत धन्यवाद्। सभी माता पिता को अपने बच्चों की संगति पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। हो सके तो उनको संगति के लाभ व हानि के विषय में बता व समझा भी देना चाहिए। समय समय पर उनसे इस विषय में चर्चा करते रहने चाहिए। आजकल समय ख़राब है। बच्चों को बिगाड़ने के अनेक साधन घर पर ही मौजूद होते हैं। सादर नमस्ते।

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. समय-समय पर उनसे इस विषय में चर्चा करते रहना चाहिए. सावधानी हटी, दुर्घटना घटी. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    आमों के जरिए मोहन को अच्छी सीख मिल गई. सच है जैसी संगति बैठिए, वैसी ही गति होती है. सकारात्मक सोच वालों के साथ उठो-बैठो और संगति रखो, तो अपनी सोच भी सकारात्मक हो जाती है.

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