राजनीति

आसिफा तो केवल बहाना है, असली उद्देश्य तो 2019 में सत्ता पाना है

2014 से मोदी जी की सरकार बनने के बाद से देश की राजनीती में बहुत पहले से चला आ रहा एक सुनियोजित षड़यंत्र उजागर हुआ है।  इसे Planted News अर्थात प्रायोजित खबर आप कह सकते है। यह एक प्रकार का बौद्धिक युद्ध है। यह युद्ध शत्रु के साथ हथियार के स्थान पर कलम से लड़ा जाता हैं। आजकल कलम का स्थान सोशल मीडिया ने ले लिया हैं।  इस युद्ध को करने के लिए साम-दाम-दंड और भेद सभी नीतियों का प्रयोग होता हैं। यह युद्ध कैसे लड़ा जाता है। यह समझे। कैंब्रिज अनलिटिका (Cambridge Analytica) जैसी एजेंसियां पहले भारतीय जनता की पसंद, नापसंद , राजीतिक झुकाव, धार्मिक मान्यता, वैचारिक प्रगति, सामाजिक रुतबा, प्रवृति, योग्यता, आर्थिक शक्ति, शोक-सैर सपाटा, तीर्थ यात्रा, विदेश यात्रा, मॉल आदि घूमना, स्वाध्याय-लेखन आदि का स्तर, फेसबुक पर शेयर किये गए लेखों का स्तर आदि के आधार पर डाटा तैयार करती हैं। इस डाटा के आधार पर उस वर्ग विशेष की पहचान की जाती है जो हर चुनाव से पहले अपनी वोट किसे देनी है। यह निर्धारित करता है। परम्परागत वोट देने वाले लोग बहुधा अपनी पार्टी नहीं बदलते। मगर जो 20 से 25% लोग अपनी पार्टी बदलते है। वह महत्वपूर्ण है क्यूंकि यही लोग मुख्य रूप से इस भ्रमजाल के शिकार होते हैं। यह समूह विशेष इसलिए होता है क्यूंकि सत्ता की चाबी इसी की जेब में होती हैं। 2014 में इस समूह ने मोदी जी को विकास के मुद्दे पर समर्थन किया था। जबकि जबसे मोदी सरकार बनी है। तबसे विपक्ष ने देश में कुछ कृत्रिम मुद्दों को पोषित किया गया है। ये घटनाएं सामान्य थी और पहले भी होती रही है। मगर इन घटनाओं को आधार बनाकर जनता को भ्रमित किया जाता है।  इसे हिंदी में राई का पहाड़ बनाना भी कहते है। हम यहाँ पर कुछ घटनाओं का उदहारण देते हैं। जो 2014 के बाद घटी और उन्हें प्रायोजित कर बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया। जैसे आगरा में हिन्दू जनजागरण द्वारा घर वापसी, दिल्ली की चर्च में चोरी, बंगाल में ईसाई नन का बलात्कार, दादरी के अख़लाक़ की हत्या, देश में असहिष्णुता का नारा, साहित्य पुरस्कार वापसी, गुजरात का पाटीदार आंदोलन, हरियाणा का जाट आंदोलन, कर्णाटक के लिंगायत को अल्पसंख्यक दर्जा, सहारनपुर में रावण सेना सम्बंधित विवाद, हरियाणा में रामपाल और रामरहीम की गिरफ़्तारी, रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में बसाना, उत्तर प्रदेश में डॉ अम्बेडकर की मूर्तियों को तोड़ना, sc/st कानून में बदलाव के नाम पर दंगा और अब जम्मू में आसिफा की हत्या आदि। इन सभी मुद्दों से किस प्रकार से सरकार पर दवाब बनाया जायेगा और इसका क्या राजनीतिक लाभ होगा। यह गणना घटना होने से पहले या तत्काल ही यह एजेंसियां विपक्ष को उपलब्ध करवाती हैं। इन सभी कृत्रिम मुद्दों की सुनियोजित मार्केटिंग की जाती है। अंग्रेजी में पढ़े लिखे लोगों को अंग्रेजी मीडिया, न्यूज़ चैनल, समाचार पत्र, सोशल मीडिया, JNU जैसे विश्वविद्यालयों की शोध पत्रिकाओं और पुस्तकों , विदेशी पत्रिकाओं , NGO, वकीलों आदि के माध्यम से भ्रमित किया जाता हैं। जबकि हिन्दू अथवा स्थानीय पत्रिकाओं के पढ़ने वालों को भी उनकी भाषा में चलने वाले विभिन्न प्रकोष्ठों के माध्यम से ऐसा माहौल तैयार किया जाता हैं। इस कृत्रिम माहौल के कारण देश की जनता का ध्यान देश का विकास, देश की सुरक्षा, पूर्व में हुए घोटालों, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, अवैध बांग्लादेशियों का बसना, रोहिंग्या का बसना, ईसाई धर्मान्तरण, गौ हत्या, लव जिहाद, जनसँख्या विस्फोट, मानव तस्करी आदि से हटकर व्यर्थ के मुद्दों में उलझ जाये। सभी जानते है कि देश की जनता ने बहुत काल बाद जातिगत, दलगत, बाहुबली और गुण्डातत्व के प्रभाव से ऊपर उठकर पहली बार 2014 में एक मजबूत और शक्तिशाली जनादेश दिया था। करीब दो दशक बार ऐसी सरकार देश में बनी, जो देश हित के लिए मजबूत फैसले लेने का दम रखती हैं। विपक्ष देश को फिर से उसी दलदल में ले जाना चाहता है। जिससे बड़ी मुश्किल से बाहर निकलने की आस बनी हैं। हम लोगों का कर्त्तव्य यही होना चाहिए कि सर्वप्रथम तो इस भ्रामक प्रचार का शिकार स्वयं न बने। दूसरा अपने प्रभाव से चाहे सोशल मीडिया हो, चाहे आपके आस पास के रिश्तेदार, पारिवारिक सदस्य, मित्र, पड़ोसी आदि सभी को यथासंभव इस षड़यंत्र की पोल खोले ताकि वे भी प्रभावित होने से बचे। अपनी सोच बड़ी और दूर की सोचने का यत्न करे। तभी इस भ्रमजाल से बाहर निकल सकेंगे। अगर आप पुरुषार्थ करेंगे तो निश्चित रूप से सन 2019 तो 2024 भी हमारा ही होगा।
     
भ्रमजाल का एक उदाहरण दे रहा हूँ। यहाँ दो चित्र दिए गए हैं। यह चित्र तुर्की के इस्ताम्बुल हवाईअड्डे का है। इसमें कैसे फ़ोटोशॉप करके एक व्यक्ति की टीशर्ट पर आसिफा के समर्थन में बयान प्रदर्शित किया गया है।  सत्य यह है कि उस व्यक्ति ने ऐसा कोई बयान अपनी टीशर्ट पर लिखा ही नहीं था। इसे कहते हैं भ्रमजाल।

डॉ विवेक आर्य