कविता

भोजताल

पिछले कुछ वर्षों से
अजनबी से लग रहे हो
जबसे तुमने विकास का दामन थामा है।

मेरे सारे यदगार पल
तुममें ढूंढते है वो पहले से अपनापन
वो चित्र जो तुमने अपने इन तटों की मोटी दीवारों में चुनवा दी है।
वो साहिल के पत्थर
और बैठे परिंदे गायब से हो गये हैं।

अब तुम हो तो गये हो
पहले से और भव्य और खूबसूरत
विदेशी पेड़ पौधों से घिरे हुए
इतराते हुए
बहुत अच्छे भी लगने लगे हो
किन्तु नहीं है तो वो पहले सा लगाव
वो पुराने दिनों के खूबसूरत लम्हे।

इस बार महसूस किया मैनें तुम्हारी बेरूखी
मेरी यादों को वर्षों पुरानी कहकर
तुम्हे उपहास करते हुए।

तुम्हारे तट पर स्थित वो मंदिर
भोजनालय, हाथठेले और तो और
जोडे़ में बैठने के लिए चिरपरिचित उद्यान
सब बड़ी तेजी से बदल गये हैं।

ये बदले हुए स्वरूप भेले ही जँचते हों
किन्तु अपनापन सा कुछ भी नहीं
पर्यटकों को लुभाते कमलापार्क और अन्य
जिनके कुछ हिस्सों में सपाट दौड़ती है सड़क
अब खोजी जाएंगी पुरानी तस्वीरों में अजनबी की तरह।

अमरेश गौतम "अयुज"

अमरेश गौतम'अयुज' पिता - श्री कन्हैया लाल गौतम ईमेल आईडी - amaresh.gautam@yahoo.com मोबाइल नं.(व्हाट्सऐप) - +917600461256 जन्म/जन्मस्थान - 04/12/1981, रीवा (मध्य प्रदेश) शिक्षा - पात्रोपाधि अभियंता। संप्रति - नौकरी (जिंदल इस्पात) प्रकाशित पुस्तकें - अनकहे पहलू(काव्य-संग्रह), मुसाफ़िर (साझा काव्य-संग्रह ), अंजुमन (साझा ग़ज़ल-संग्रह) साहित्य उदय (साझा काव्य-संग्रह) एवं कुछ प्रकाशाधीन.... पुरस्कार/सम्मान - साहित्य शिखर सम्मान (उदीप्त प्रकाशन द्वारा सम्मानित) वेबसाइट :- www.sahityikbagiya.com मेरे बारे में :- मेरा जन्म मध्यप्रदेश के रीवा जिले के रायपुर गौतमान में 4 दिसम्बर 1981 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ।विद्यालयीन शिक्षा मैंने यहीं गाँव में पूरी की और उच्च शिक्षा के लिए पिता जी श्री कन्हैयालाल गौतम के पास बैतूल गया । सन् 1999 में विद्यालयीन शिक्षा समाप्त कर मैं पात्रोपाधि की पढ़ाई के लिए भोपाल गया और वहाँ से सन् 2003 में इन्जीनियरिन्ग डिप्लोमा प्राप्त की। हिन्दी साहित्य में मुझे बचपन से ही रुचि थी,यही नहीं मैंने पहली कविता सन् 1997 में लिखी जब दसवीं में था। कवि सम्मेलनों में कविता पाठ सुनने के लिए दूर-दूर जाया करता और पूरा कवि सम्मेलन सुनता । पारिवारिक स्थिति ठीक न होने की वजह से पढ़ाई आगे की रोककर नौकरी करने लगा किन्तु साहित्य साधना जारी है।